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बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन
रूवग की प्रामाणिकता
रजत निर्मित रूवगों में पाटलिपुत्र का रूवग सबसे प्रामाणिक माना जाता था। पाटलिपुत्र का एक रूवग, उत्तरापथ के दो रूवग तथा द्विग (द्वीप) के चार साभरग के बराबर था। इसी प्रकार कांचीपुर के दो नेलक एवं दक्षिणापथ का दो रूवग, पाटलिपुत्र के एक रूवग के बराबर था।२८८ रजत निर्मित द्रम्म
रजत निर्मित एक अन्य सिक्का जिसे द्रम्म कहा जाता था, भिल्लमाल (भिनमाल, जिला जोधपुर) में प्रचलित था।१८९ ताम्र सिक्के
तांबे के सिक्कों के रूप में पण, माष और काकणी का उल्लेख हुआ है। ताँबे के कर्षापण का सोलहवाँ भाग माष कर्षापण था। ताँबे का एक छोटा सिक्का काकिणी भी था जो दक्षिण भारत में प्रचलित था।१९० 'निशीथचूर्णि' के अनुसार प्रतिदिन के व्यवहार में ताम्र के सिक्कों का प्रयोग किया जाता था।१९१ अन्य सिक्के
इन सिक्कों के अतिरिक्त छोटे सिक्कों के रूप में कौड़ियों का भी प्रयोग होता था। यह समुद्री जीव के शरीर का आवरण था। बृहत्कल्पभाष्य' में इसे 'कवडुक'१९२ कहा गया है।
'बृहत्कल्पभाष्य' और उसकी वृत्ति में अनेक मुद्राओं का उल्लेख है। सबसे पहले कौड़ी (कवडग) का नाम आता है। ताँबे के सिक्कों में काकिणी१९३ का उल्लेख है, जो सम्भवतः सबसे छोटा सिक्का था और दक्षिणापथ में प्रचलित था।१९४ चाँदी के सिक्कों में द्रम्म१९५ का नाम आता है और भिल्लमाल (भिनमाल, जिला जोधपुर) में यह सिक्का प्रचलित था। सोने के सिक्कों में दीनार ९६ अथवा केवडिका का उल्लेख है जिसका प्रचार पूर्व देश में था। मयूरांक राजा ने अपने नाम से चिह्नित दीनारों को गाड़कर रक्खा था।१९७ 'बृहत्कल्पभाष्य' तथा "निशीथचर्णि' में दीनार का उल्लेख एक स्वर्ण सिक्के के रूप में किया गया है। जिसका प्रचलन पूर्व देश में अधिक था।१९८ आपसी लेन-देन अथवा वस्तुओं के क्रय-विक्रय में इन सिक्कों का प्रयोग किया जाता था। प्राचीन काल में दीनार ग्रीक से लिया गया लैटिन का 'देनेरियस' था जो एक प्रकार का चाँदी का सिक्का
था।१९९