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बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन
५. अंतर्निवसनी- कमर से लेकर यह वस्त्र आधी जांघों तक पहुँचता था। यह कपड़े पहनने के समय नंगा दिखने से बचने के लिए पहना जाता था।१२६
६. बहिर्निवसनी- कमर से लेकर यह वस्त्र एंडी तक पहुँचता था। यह कमर से डोरी से बंधा रहता था।१२७ यह एक प्रकार से साड़ी ही था।
७. कंचुक- साध्वियों का कंचुक साढ़े तीन हाथ लंबा और एक हाथ चौड़ा बेसिला वस्त्र। इसे कमर के दोनों ओर बांध लिया जाता था। इससे कठोर स्तन भी जिनका उभार कसे वस्त्रों के पहनने से ही उठता था ढंक जाते थे।१२८ यहाँ गृहस्थ स्त्रियों की तरह साध्वियों के लिए कंचुक न पहन सकने के कारण बेसिले कंचुक का विधान है।
८. औपकक्षिकी- यह कंचुक के ही समान डेढ़ हाथ लंबा एक चौखुटा वस्त्र था। यह छाती का एक भाग ढकते हुए दाहिने कंधे पर बांध दिया जाता था।१२९
९. वैकक्षिकी- यह वस्त्र औपकक्षकी के प्रतिकूल बायीं ओर पहना जाता था। यह पट्ट, कंचुक और औपकक्षी को ढंक लेता था।३०
१०. संघाटी- संघाटियाँ चार होती थीं। एक दो हाथ चौड़ी, दो तीन हाथ और एक चार हाथ। लंबाई में ये चारों संघाटियाँ साढ़े तीन हाथ से चार हाथ तक होती थीं। दो हाथ चौड़ी एक संघाटी साध्वियाँ आवसथ में पहनती थीं। तीन हाथ चौड़ी दो संघाटियों में से एक तो साध्वियां भिक्षा मांगने के अवसर पर पहनती थीं और दूसरी शौच जाने के समय। चार हाथ चौड़ी संघाटी धर्मोपदेश सुनते समय इसलिए पहनी जाती थी कि साध्वियों के सीधे खड़े होने पर उनका पूरा अंग ढंक जाय।१३१
११. स्कंधकरणी- यह चार हाथ लंबाई का समचतुरस्र कपड़ा होता था जो कंधे पर तेज हवा से बचने के लिए रखा जाता था। इस वस्त्र का उपयोग साध्वियों को बौनी दिखलाने के लिए किया जाता था।३२
'बृहत्कल्पभाष्य' में वस्त्र तैयार करने का भी उल्लेख मिलता है। पहले कपास (सेडुग) को ओटकर (रूंचंत) उसकी रूई बनायी जाती, फिर उसे पीजते थे (पिंजिय) और उससे पुनी (पेलु) तैयार की जाती थी।१३३ कपास, दुगुल्ल और मुंज (वज्जक)१३४ के कातने का उल्लेख आता है। बुनकरों की शालाओं