SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन को प्रसन्न करने के लिये बलि (पक्वान्न) आदि दी जाती थी।१३१ कुमारसम्भव में भी पार्वती द्वारा कुल देवता को प्रणाम करने का उल्लेख है।१३२ यज्ञ बृहत्कल्पभाष्य में यज्ञ-याग का कोई उल्लेख नहीं है। परन्तु एक जगह नरबलि का उल्लेख अवश्य हुआ है। बताया गया है कि कभी किसी देवता को प्रसन्न करने के लिए आगन्तुक पुरुष को मार डालते और वह जहाँ मारा जाता उस घर के ऊपर गीली वृक्ष की शाखा का चिह्न बना दिया जाता था।१३३ पर्व एवं उत्सव बृहत्कल्पभाष्य में अनेक पर्व एवं उत्सवों के उल्लेख मिलते हैं। पुष्णमासिणी (पौर्णमासी) का उत्सव कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता था। इसे कौमुदी महोत्सव भी कहते थे। उत्सव में जाते समय यदि कदाचित् जैन श्रमणों के दर्शन हो जाते थे तो उसे अमंगल ही समझा जाता था।१३४ थाणुप्पाइय (स्थानोत्पातिक) नामक मह अचानक किसी अतिथि के आ जाने पर मनाया जाता था।१३५ खेत में हल चलाते समय सीता (हलपद्धति देवता-हल से पड़ने वाली रेखायें) की पूजा की जाती थी। इस अवसर पर भात आदि पकाकर यतियों को दिया जाता था।१३६ धार्मिक उत्सवों में पज्जोसण (पर्युषण) पर्व का सबसे अधिक महत्त्व था। यह पर्व पूर्णिमा, पंचमी और दशमी आदि के दिन मनाया जाता था।१३७ लेकिन इस पर्व का प्रस्तुत ग्रन्थ में कोई उल्लेख नहीं है। जैन धर्म के महान् पोषक मौर्य सम्राट सम्प्रति के समय में अनुयान (रथयात्रा) महोत्सव बड़ी धूम धाम से मनाये जाने का उल्लेख प्राप्त होता है। इस अवसर पर राजा स्वयं अपने भट और भोजिकों को साथ लेकर रथ के साथ-साथ चलता और रथ पर विविध वस्त्र, फल और कोड़िया चढ़ाता था।१३८ । इसके अतिरिक्त अनेक घरेलू त्योहार भी मनाये जाते थे। एक ऐसे ही उत्सव को 'आवाह' कहा जाता था। इसमें विवाह के पूर्व तांबूल आदि प्रदान किया जाता था।९३९ अतः बृहत्कल्पसूत्रकालीन धार्मिक व्यवस्था उत्तम थी। भाष्यकार ने जैन धर्म के अतिरिक्त उस समय प्रचलित अन्य धर्मों, धार्मिक क्रिया-कलापों, रीतिरिवाजों, श्रमण-श्रमणियों के आचारगत अनेक पहलुओं पर विधिवत प्रकाश डाला है।
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy