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________________ (३१) पानी को देखे बिना जूते खोल लेना उचित नहीं। इसके बाद प्रियतमा के कथनानुसार मेरे ऊपर पिताजी का स्नेह कुछ कम होने लगा क्यों कि कान का विष बड़ा भयंकर होता है, दूसरे दिन एकाएक राजा ने किसी बहाने मेरे अधिकार के एक हजार गाँव मुझसे छीन लिए और एक छोटा-सा गाँव मुझे दे दिया । क्रोध में आकर मैंने पिताजी को मारकर राज्य लें लेने का विचार कर लिया। फिर मैंने सोचा कि मेरे पूर्वजों ने ऐसा पापकर्म नहीं किया, तो फिर इस असार राज्य के लिए मैं ऐसा क्यों करूँ ? रागांध राजा स्त्री वचन से भले ही अन्याय करें किंतु मुझ विवेकी के लिए ऐसा करना उचित नहीं । पिताजी के द्वारा किया गय अपमान असह्य है, आत्महत्या भी अनुचित है अंतः देश का त्याग ही सर्वोत्तम है, अन्य देश में जाकर किसी दूसरे राजा की सेवा करना भी अपमानजनक ही होगा, क्यों कि ऐसा करने से जहाँतहाँ लोग मेरा उपहास करेंगे, फिर मेरे लिए वहां रहना भी कठिन हो जाएगा। इसलिए कुछ विश्वासपात्र पुरुष को साथ लेकर किसी एकांत समीप प्रदेश में जाकर रहूँ और पिताजी के मरने के बाद जैसा उचित होगा वैसा करूंगा, ऐसा निश्चय करके साथ में कुछ प्रिय परिजन को लेकर सामंत मंत्री नगर नायक राजा आदि से अज्ञात ही में वहां से निकल पड़ा और इस सिंहगुफा पल्ली में रहने लगा । चोरी आदि कुंकर्मों में निरत अनेक भील मिलें, उनके साथ रहता हुआ अभी पल्ली पति रूप में रह रहा हूँ। धनदेव ! आपने जो पूछा था कि इन भीलों के साथ आप क्यों रहते हैं ? इस का उत्तर मैंने संक्षेप में दे दिया । आश्चर्यचकित होकर धनदेव ने कहा कि पिता भी अपने पुत्र का इस प्रकार अपमान करते हैं ! अरे ! अरे ! इस संसारवास को धिक्कार
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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