SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२१०) किया। मृग शावक अत्यंत सुंदर था। उसे देखकर बंधुश्री ने अर्जन से कहा कि खिलौना रूप में मैं इसे रक्खंगी, यह कहकर कोमल रस्सी से मगशावक को उसने बाँध रक्खा। हरिणी भी 'डर से भाग गई । और पुत्रस्नेह से बार-बार हरिण के साथ आती थी। किंतु डर के मारे वहाँ टिक नहीं पाती थी। वह बेचारी हरिण अपने बच्चे के वियोग में घास नहीं खाती थी, पानी नहीं पीती थी । दूसरे दिन भी हरिणी के उस प्रकार दुःखी देखकर बंधुश्री को दया आई और उसने उस हरिणशावक को छोड़ दिया। बंधनमुक्त होकर वह मृगशावक वहाँ से भागकर अपने माता-पिता के पास गया, वह हरिणी खुश हो गई। दयायुक्त अर्जुन मरकर अमरकेतु राजा बना और बंधुश्री मरकर कमलावती रूप में उत्पन्न हुई । पूर्वभवाभ्यास से आप दोनों में परस्पर इतना प्रेम रहा । हरिण को एक क्षण के लिए जो हरिणी से वियुक्त रक्खा उस कर्म के उदय से राजा के साथ आपको वियोग प्राप्त हुआ। उस हरिणी को उसके बच्चे के साथ जो आठ पहर का वियोग कराया। उसी कर्म के उदय में आने से आपको अपने पुत्र के साथ आठ लाख बरस का दुःसह वियोग रहा। एक क्षण में संचित कर्मजीव को बहुत दिनों तक शुभ-अशुभ फल देता है, अतः कर्मबंध के कारण को सर्वथा त्याग करना चाहिए। इस प्रकार गुरुवचन सुनकर सारी सभा संसारभय से उद्विग्न होकर दीक्षा लेने के लिए तैयार हो गई । राजा-रानी को जाति-स्मरण उत्पन्न होने पर चारित्र्यावरण कर्मक्षय हो जाने से चरण परिणाम उत्पन्न हो गया। उसके बाद अमरकेतु राजा ने अपने पद पर पुत्र को अभिषिक्त करके तत्कालोचित कार्यों को करके पूत्र को शिक्षा देकर परिजनों से मिलकर, रानी कमलावती के साथ गुरु के पास दीक्षा
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy