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________________ (२०८) रचित चौक में मणियों से सुशोभित सिंहासन पर पुत्र को बैठाकर पुत्र-दर्शनजनित हर्ष से रोमांचित माता ने मांगलिक उपचार किए । कमलावती के चित्त में अवर्णनीय हर्ष था । इधर कुशाग्रपुर जाकर भानुवेग विद्याधर ने नरवाहन राजा से सारे वृत्तांत कह दिए । नरवाहन ने कहा कि उनके लिए तो अभी तक सुरसंदरी को कुमारी रक्खा था। दूसरे राजा को नहीं दिया, क्यों कि उसके जन्मसमय दिव्यज्ञानियों ने कहा था कि यह कन्या विद्याधर चक्रवर्ती की भार्या होगी। शत्रुजय राजा को मारकर जिसने मुझे जीवनदान दिया, उसको सुरसुंदरी देने के विषय में पूछना ही क्या है ? ज्योतिषी को बुलाकर सुंदर विवाहलग्न निकालने के लिए कहने पर ज्योतिषी ने कहा, राजन् ? आज से तीसरे दिन रात के चौथे पहर में सर्वसुंदर विवाहलग्न है । राजा ने कहा कि यह दिन अत्यंत नज़दीक है। विवाह की सामग्रियाँ कैसे तैयार की जाएंगी। अत: भानुवेग ! आप ही कुछ उपाय बतलाइए । तब उसने कहा कि राजन् ! आप हस्तिनापुर चल जाइए, वहाँ पहुँचने पर सब ठीक हो जाएगा, इसके बाद भानुवेग के द्वारा कल्पित दिव्य विमान पर चढ़कर विवाहोचित सामग्री लेकर नरवाहन राजा हस्तिनापुर आए। इधर समाचार पाकर चित्रवेग चित्रगति भी विद्याधरों के साथ वहाँ पहुँच गए । अमरकेतु राजा ने उनका सत्कार किया और अपने कुल की मर्यादा के अनुसार बड़े समारोह के साथ लग्नदिवस में सुरसुंदरी के साथ मकरकेतु का विवाह कराया। राजा ने विद्याधरों का उचित सत्कार किया । समस्त नगर के लोगों को प्रेम से भोजन कराया। सभी जिन-मंदिरों में महोत्सव करवाया। वस्त्र आदि से जिनप्रतिमाओं की पूजा करवाई । सुंदर वस्त्र, पात्र, कंबल आसन से
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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