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पन्द्रहवाँ-परिच्छेद
मुनिवध करने के बाद अत्यंत प्रसन्न वह अम्बरीष नारकी जीवों को अत्यंत पीड़ा देने में संतोष पाता हुआ, पाप कर्म बाँधकर, उस स्वर्ग से च्युत होकर, विधवा-व्यभिचारी के गर्भ में उत्पन्न हुआ । उस विधवा ने अनेक प्रकार कटु क्षार औषधपान करके गर्भ को नष्ट किया, रौद्र ध्यान से मरकर, सात पल्योपम आयु बाँधकर, वह अम्बरीष जीव प्रथम नरक में उत्पन्न हुआ। वहाँ तीव्र दुःख का अनुभव करके, आयु पूर्ण होने पर, वहाँ से उद्धृत होकर, इसी भरतक्षेत्र में दुग्धक नामक ब्राह्मण पुत्र हुआ। दारिद्रय-दुःख से संतप्त होकर, तापस दीक्षा लेकर, अज्ञानतप करकेमरकर, धरणेंद्र का एक पल्योपम से कुछ अधिक आयुवाला सामानिक देव बना । उसका नाम कालबाण पड़ा 1 दिव्य ऋद्धि से वह सम्पन्न था, वहाँ भी वैर का स्मरण करके विभंग ज्ञान से उन दोनों के स्थान को जानना चाहा; किंतु उतना ज्ञान नहीं होने से बार-बार उपयोग में आने पर भी द्वितीय कल्प में रहनेवाले उन' दोनों को देख न सका । राजन् ? इस प्रकार वह शेष आयु को बिताने लगा।
दिव्य भोगों को भोगते हुए कुछ कम आठ पल्योपम आयु को पूर्ण करके, ईशान कल्पवासी वह विद्युत्प्रभ देव वहाँ से च्युत होकर, कमलावती देवी की कुक्षि में, आपके पुत्र के रूप में उत्पन्न