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स्त्रियाँ अपने-अपने महल पर चढ़कर जाते हुए कुमार को देखने लगीं, एक ने कामसमान सुंदर कुमार को देखकर मन में सोचा कि वह स्त्री धन्य है जिसके ये पति हैं, दूसरी तो कुमार को एकटक से देखती देवी जैसी बन गई । एक तो हाथ में मुक्ताहारे लिए कुमार का चिंतन करती करती योगिनी जैसी बन गई। कुमार को देखकर प्रायः सभी स्त्रियाँ कामांध हो गईं, कुछ अपने बालक को चूमने लगीं, कुछ सखियों से लिपटने लगीं, कुछ गीत गाने लगीं, कुछ तो ज़ोर से बोलने लगीं, इस प्रकार कुमार जब सागरदत्त सार्थवाह के महल के पास आया, तो उसकी दृष्टि सुलोचना पर पड़ी और सुलोचना ने उसे देखा । पूर्वभव के अभ्यास से देखतेदेखते दोनों में अत्यंत अनुराग उत्पन्न हो गया । सुलोचना के रूप से मोहित होकर कुमार घोड़े से नीचे उतर गया और बालमित्र सुमति से उसके पूछा कि हाथ में दर्पण लिए यह किसकी भार्या है उसने कहा, कुमार ! सागरदत्त के पुत्र सुबंधु वणिक की यह भार्या है सुनते ही कोड़े को फिराकर, घर आकर वह चिंतन करने am fee उसके बिना मेरे राज्य से क्या ? अंतःपुर से इस महाविभूति से क्या ? यद्यपि यह कार्य लोकविरुद्ध है तथापि उसके बिना मैं जी ही सहीं सकता, अतः दूती भेजकर उसका अभिप्रायानेतान्हा शिवह भी मुझे चाहती हो तो उसको अपापुर में आ । जिसने एक परिव्राजिका को बुलाकर उससे कहा, संम्बता ! ऐसा उपाय करें, जिससे वह मेरी प्रिंबिक गई और बड़ी चतुरता से मीना जैसी क्यों दीखती बोलो अपनी मंत्र शक्ति राव विकि जिस प्रकार एक
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बातचीत के प्रसंग
हर उसके पास उससे कही कि किससे काम है
हो
से उसे लोग आऊँगी उसने कहा