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________________ (१८९) अक्षुता नाम की थी, उसके मंडन-मल्हन-चंदन नामक तीन पुत्र हुए, क्रमशः लक्ष्मी-सरस्वती-सम्पदा नामक उन तीनों भाइयों की भार्याएँ थीं, वे स्वभावतः अल्पकषायवाली थीं, और आपस में उन्हें बड़ा प्रेम था, वे तीनों भाई संतुष्ट तथा सुखी थे। एक समय निम्ननामक नौकर ने लक्ष्मी को देखा । वह उसके रूप-लावण्य से मोहित हो गया, वह वारंवार उससे प्रार्थना करने लगा किंतु लक्ष्मी उसे मन से भी नहीं चाहती थी, एक दिन लक्ष्मी पानी लाने के लिए तालाब गई, उसके पीछे-पीछे घोड़े पर सवार निम्न भी वहाँ पहुँच गया, वह उसे पकड़कर घोड़े पर बैठाकर जंगल में चला गया। लक्ष्मी रो रही थी, भीलों के साथ युद्ध हुआ, जिसमें निम्न मारा गया, आभूषणों को लेकर लक्ष्मी वहाँ से चली, किंतु उसे दिशा का ज्ञान नहीं रहा। एक भूखे सिंह ने उसे मारकर खा लिया, मल्हन की पत्नी सरस्वती को मोहिल नामक वणिक बराबर प्रार्थना करता था, किंतु सरस्वती ने अपने पति से सारी बातें कह दी, मल्हन ने राजा से जाकर निवेदन किया, राजा ने क्रोध में आकर उसे देश से निर्वासित किया। तीनों भाई लक्षपूर्व तक नियम से अपनी आयु पूर्ण करके, मरकर, फिर मनुष्यभव में आए, जिनमें जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र में, मेखलावती नगरी में भीमरथ नामक राजा की कुसुमावली देवी का पुत्रमंडन हुआ। उसका नाम कनकरथ रक्खा गया । युवावस्था में आने पर विशुद्ध वंश की राजश्री आदि कन्याओं के साथ उसने विवाह किया। राजा ने उसे युवराज पद पर बैठाया । अंतःपुर में वह देवलोक में देव की तरह अनेक भोगों को भोगने लगा। उसी नगरी में सागरदत्त, समुद्रदत्त सहोदरभाई दो सार्थवाह रहते थे, निम्नजीव जो जंगल में भीलों से मारा गया था। अनेक भव.ग्रहण करने के बाद सागर
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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