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________________ (१६३) वे हमारे देश में पहुँच गए हैं, यह बात गुप्तचरों से मालूम हुई है, देवि ? इसी कारण से मैं चिंतित हूँ, माता ने कहा कि इस में चिंता की बात नहीं है, सुरसुंदरी कहकर कनकावली की पुत्री मदनलेखा के साथ उसका विवाह कर दीजिए। वे खुश होकर अपने नगर चले जाएँगे, अन्यथा बड़ी सेना लेकर आपको उपद्रव पहुँचाएँगे, राजा ने कहा, देवि ? यह बात तो मंत्रियों ने भी बतलाई थी, किंतु मतिसागर को यह विचार अच्छा नहीं लगा, उसने कहा कि पहले उनको यहाँ आने तो दीजिए, सुमति ने कहा था कि यहाँ आने पर उनकी मृत्यु हो जाएगी। उनकी यात्रा भी अच्छी नहीं हुई हैं, तथा शनैश्वर आदि ग्रह भी पराजय देनेवाले हैं, यहाँ आने पर हमारी विजय होगी और उनका पराजय होगा, देवि ? आप चिंता नहीं करें, उनको रोकने के सारे उपाय कर दिए गए हैं, फिर भी प्रबल शत्रु से चिंता तो हो ही रही है, हँसिनी ? इस प्रकार जब कुछ दिन सुख से बीते, इतने में उनकी सेना नगर में प्रविष्ट होने के लिए नगर को बाहर से घेर लिया, नगर के द्वार बंद कर दिए गए, परिखा जल से भर दी गई, जहाँ तहाँ कवचधारी योद्धा तैयार हो गए, अनेक यंत्र तैयार कर लिए गए, शस्त्र तेज किए जाने लगे, वीरों का सन्मान होने लगा । दोनों ओर के सुभट मरने लगे, सामंत नागरिक आदि भयभीत होकर किंकर्तव्य विमूढ़ हो गए, सुमति के वचन से पिताजी ने अपना साहस कायम रक्खा था। उसके बाद एक दिन रात को जब मैं महल के ऊपर सोई थी, कोई मुझे वहाँ से उठाकर ले चला । ज्यों ही नींद खुली मैं रोने लगी, हाय माताजी? हाय पिताजी? कोई देव था, विद्याधर मुझे हर कर ले जा रहा है, वीरगण ! आप लोग मुझे इस पाप
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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