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________________ (१५९) हूँ, ठीक करना मेरा काम नहीं, इस पर माधवी ने कहा कि जो रोग का लक्षण जानता है वह उसकी दवा भी जानता है क्यों कि जो चोर को देखता है वही उसको पीटता भी है, इसके बाद सब सखियों ने श्रीमती से आग्रह किया और कहा कि तुम्हारे पिता जो मंत्र जानते हैं, श्रीमती ने कहा कि मेरे पिताजी मंत्र जानते हैं इससे मुझे क्या ? दूध मीठा होने से गोबर को क्या लाभ ? यदि मेरी सखी रुष्ट न हो तो मैं एक बात कहती हूँ, इसकी व्याधि अपूर्व है, मंत्र से छूटनेवाला नहीं है, तब कुमुदिनी ने कहा कि इसमें रुष्ट होने की कोई बात नहीं है, निशंक होकर बोलो, जिससे बीमारी दूर हो जाए। तब श्रीमती ने कहा कि चित्र में लिखित जिसको इसने देखा है वही वैद्य है, वही इसकी व्याधि को दूर कर सकता है, उसकी बात सुनकर चित्रपट को फैलाकर उसकी पूजा करके हँसते हुए सब सखियों ने इस प्रकार प्रार्थना करते हुए कहा, हे चतुर ! महायश ! चित्रस्थित महानुभाव ! आप हमारी बिनती सुनिए । आपको देखने से मेरी सखी अस्वस्थ हो गई है अतः आप ऐसा उपाय कीजिए जिससे मेरी सखी स्वस्थ हो जाए। तब मैंने क्रोध में आकर कहा कि तुम पागल की तरह असंबद्ध क्यों बोलती हो ? अचेतन को प्रार्थना करने से क्या लाभ ? वह मेरी बीमारी को छुड़ा सकता है ? तब श्रीमती ने मुझ से कहा, सुरसुंदरि ! इस चित्रगत अचेतन ने ही तो तुम्हारी यह स्थिति कर दी है । तब मैंने लज्जित होकर कहा कि यदि तुम इस प्रकार जानती हो तो उपाय क्यों नहीं करती ? मेरी बात सुनकर चित्रपट लेकर श्रीमती मेरी माता के पास गई और उससे सारी बातें की, तथा चित्रलिखित कामसुंदर उस तरुण को भी दिखलाया । मेरी माता ने मेरे पिताजी से चित्रपट दिखलाकर सब बातें कह
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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