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( १:७)
अभी विद्या साधन करने दीजिए, बाद में सब कुछ करूँगी । यदि दैव अनुकूल रहेगा तो अवश्य भाई के साथ बहन का संगम कराऊँगी । उसकी बात सुनकर मैंनें कहा कि आप अनुचित क्यों बोलती हैं, चित्र सुंदर होने से मेरे शरीर में रोमांच हो आया है । और आप तो कुछ और ही सोचती हैं ? तब कुमुदिनी ने मुझसे कहा कि सखि ? तुम भी चित्र लिखने का अभ्यास करो, और प्रियंवदे ? आप यह चित्रपट दीजिए जिससे आपकी बहन चित्र का अभ्यास करेगी । उसने कुमुदिनी को चित्रपट देकर मेरे साथ संभाषण करके आकाशमार्ग से प्रस्थान किया और मैं भी सखियों के साथ अपने घर आई ।
प्रियंवदा दर्शन नाम ग्यारहवाँ परिच्छेद समाप्त
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