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________________ (११३) गुरु के सामने कहा कि आपके अमृतमय वचन सुनने पर भी दुष्ट सर्प के विष की तरह राग नहीं टूटता है । भगवन् ! यदि आपकी आज्ञा हो तो सुरत-सुख की पिपासा छोड़कर दयिता के साथ दीक्षा ले लूँ । केवल मैं उसको देखे बिना रह नहीं सकता हूँ । सूरि ने यह सोचकर कि अभी दीक्षा दे देता हूँ। सूत्रार्थ का अनुशीलन करने से इसका राग टूट जाएगा, यह सोचकर भार्यासहित धनवाहन को दीक्षा दे दी। चंद्रजसा महत्तरिका के पास अनंगवती साधुक्रिया सीखने लगी। सूत्रार्थग्रहण करने पर भी जब धनवाहन ' का राग नहीं टूटा तब फिर गुरु ने उसे समझाया कि भद्र ! अन्य स्त्री में राग से भी दुर्गति मिलती है किंतु श्रमणी के साथ अनुराग तो अनंतनरक को देनेवाला होता है। गुरुवचन सुनने पर उसने बड़ा पश्चात्ताप किया, फिर भी जब दोनों का अनुराग निःशेष नहीं हुआ, फिर भी गुरु आज्ञा पालन में दोनों का समय बीतने लगा । एक दिन वसुमती सहित अनंगवती ने बाहर जाने पर महिला सहित एक पुरुष को देखकर वसुमती से कहा कि आर्ये ? यह स्त्री तो बहन सुलोचना जैसी लगती है। उसकी बात सुनकर ठीक से देखकर वसुमति ने कहा कि यह मेरी बहन सुलोचना ही है, मेखलावति में सुबंधु के साथ इसका विवाह हुआ था। एक दिन राजकुमार कनकरथ ने इसे देख लिया और इसे अपने अंतःपुर में रख लिया । वह अंतःपुर में प्रधान बन गई, यह बात तो तुम्हें भी मालूम है । यह पुरुष वही राजकुमार कनकरथ है, सुलोचना ने कहा कि मैं इससे बात करती हूँ, देखू यह मुझे पहचानती है या नहीं ? तब दोनों ने उससे कुछ पूछा किंतु उसने -८
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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