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उन्हें छोड़कर चली आई, इस लिए मैं इस प्रकार कहती हूँ। संध्या समय घर आने पर धारिणी ने मेरी माता से जातिस्मरण आदि सभी बातें बतलाईं, प्रसन्न होकर उसने पिताजी से भी कहा, हर्षित होकर उन्होंने कहा कि मुझे बड़ी चिंता थी कि लड़की ने पुरुषवेश को क्यों धारण कर लिया है ? किसी वर को क्यों नहीं चाहती है ? अवश्य हमारे अभ्युदय के लिए ही इसे जातिस्मरण उत्पन्न हुआ ? लोगों ने आकर मुझ से कहा था कि प्रियंगुमंजरी को हाथी से बचानेवाला कुमार भानुगति का पुत्र चित्रगति था, यदि इसकी इच्छा हैं तो उसीको अपनी कन्या दूंगा, तब चंपक माला ने हर्षित होकर कहा कि इसके लिए वह कुमार सर्वथा योग्य है, इस का भी उसके ऊपर बड़ा अनुराग है, किंतु स्वामिन् ? ज्वलन प्रभ के कार्य से कनकप्रभ और भानुगति दोनों राजा में परस्पर बड़ा विरोध है, जो कि आप जानते हैं, तो फिर चित्रगति विवाह के लिए यहाँ कैसे आएगा। लड़की को स्वयंवरा बनाकर यदि उस नगर में भेज देती हूँ तो प्रियतम? तो मेरे हृदय में आनंद नहीं आएगा क्यों कि एक ही तो लड़की है, इसका विवाह यदि मैं नहीं देखूगी तो मेरा जीवन बेकार हो जाएगा। इतने में चंदन नाम का मेरा भाई आया और उसने कहा कि पिताजी ? आप लोग एकदम निश्चित कैसे हैं ? सारा नगर आकुल-व्याकुल हो रहा है, नगर में ऐसी बात चलती है कि कनकप्रभ राजा ने जिन मंदिर का उल्लंघन किया है इसलिए क्रोधित होकर धरणेंद्र ने उनकी सभी विद्याओं का नाश कर दिया है । आज ज्वलनप्रभ को रोहिणीविद्या सिद्ध हो गई है, अतः भय से कनकप्रभ राजा यहाँ से भागकर विद्याधरेंद्र श्री गंधवाहन के शरण में चला गया है। यहाँ के लोग
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