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________________ (९५) उत्पन्न होने से आज मुझे प्राणप्रिय देव की याद आ गई है, इसलिए उनका दर्शन करने के लिए मैं अत्यंत उत्कण्ठित हो गई हूँ, वह दिन कब आएगा जब मैं स्नेहभरी दृष्टि से अपने प्रियतम का दर्शन करूँगी ? यही सोचकर मैं शोकित थी, इतने में तुम आ गई और मैंने तुमसे अपने मन की सारी बातें कह दीं, उसकी बात सुनकर धारिणी ने कहा कि भद्रे ? केवली का वचन मिथ्या नहीं होगा, तो फिर तुम इतनी चिंतित क्यों हो रही हो? तब मैंने हँसकर कहा कि यह बात बिलकुल ठीक है, इसमें कोई संदेह नहीं, किंतु अत्यंत उत्कण्ठा से मेरा मन व्याकुल हो रहा है, इतने में प्रियतम ? मेरी माता चंपकमाला ने आकर मुझ से कहा, पुत्रि ? जल्दी स्नान, भोजन, श्रेष्ठ शृंगार कर, मैंने पूछा कि आज एकदम सबेरे भोजन का समय क्यों हो गया ? माता ने कहा कि आज उद्यान में, जिन-मंदिर में बड़े समारोह के साथ युगादि देव का स्नपन सूर्यास्त काल तक होगा। नगरवासी लोग सब जा रहे हैं, हम भी अपने परिजन के साथ चलेंगे, इस लिए आज जल्दी भोजन बन गया है, अब तू जल्दी तैयार हो जा जिससे हम भी समय पर यहाँ से चलें, माता का वचन सुनते ही उठकर भोजनादि करके सुंदर रथ पर चढ़ गई, परिजन सहित उद्यान भूषण जिन-मंदिर में जाकर अच्छी तरह से पूजा करके भगवान की वंदना करके भक्त विद्याधरों से किए जाते हुए स्नपन को मैंने देखा, स्नपन समाप्त होने पर परिजन के साथ रथ पर चढ़कर जब अपने नगर की ओर आ रही थी इतने में एक पागल हाथी नगर से निकलकर आया, उसको देखकर रथ के घोड़े चंचल होकर उन्मार्ग से चलने लगे, रथ टूट गया, मैं गिर पड़ी, मूच्छित हो गई। उसके बाद क्या हुआ कुछ पता नहीं, होश में आने पर अपने उत्तरीय वस्त्र
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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