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प्रकाशकीय निवेदन
परिमाणम् (१)' 'द्रव्य परिमाणम् (२) ' ' क्षेत्रस्पर्शनाप्रकरणम्' 'भवस्थितिः (२) ' ' प्रकरणानि, आदि का भी मुद्रण हम आपके कर कमलों में प्रस्तुत कर रहे है ।
इससे पूर्व भी हमारी संस्था द्वारा 'प्राचीनाः चत्वारः कर्मग्रन्थाः' 'सप्ततिका नामनो छुट्टो कर्मग्रन्थ' '१ थी ५ कर्मग्रन्थ' आदि छोटे बडे ग्रन्थ भी प्रकाशित हुए हैं।
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आज तक इस समिति द्वारा प्रकाशित किये गये समस्त ग्रन्थरत्नों की आधार शिला दिवंगत परम पूज्य " आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वर महाराज साहब हैं, जिनकी सतत सत्प्रेरणा, मार्गदर्शन, प्रस्तुत : साहित्य का उद्धार करने की अदम्य उत्कंठा और कालोचित अथक परिश्रम से ही प्रस्तुत ग्रन्थस्त्नों का जन्म हुआ " है तथा इन्हीं महापुरुष के शुभाशीर्वाद से हम ग्रन्थरत्नों के प्रकाशन के महत्कार्य में उत्तरोत्तर साफल्य की ओर पदार्पण कर रहे हैं । इन्हीं महात्मा ने हमारी संस्था को कर्म साहित्य के इन ग्रन्थत्तों के प्रकाशन का लाभ देकर अनुगृहीत किया । अतः हम इनके ऋणी है और इस ऋण से कभी भी उऋण नहीं हो सकते। अतः ऐसे परमोपकारी महाविभूति आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वर महाराज साहब का हम नतमस्तक कोटि-कोटि वन्दन करते हुए, इनके प्रति अवर्ण्य आभार प्रदर्शित कर रहे हैं ।
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