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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास का प्रमुख केन्द्र होने के कारण शूरसेन जनपद को अत्यधिक ख्याति प्राप्त हुई। शुंग शासकों ने एक सौ ई. पू. तक शूरसेन जनपद पर राज्य किया। तत्पश्चात् राजनैतिक उथल-पुथल प्रारम्भ होने के कारण उत्तर भारत में शक-कुषाणों का शासन आरम्भ हुआ। शूरसेन जनपद के मित्रवंशी स्थानीय शासकों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। __शक राजाओं ने उत्तर-पश्चिम भारत की पतन्नोमुख राजनीति का लाभ उठाकर शुंग साम्राज्य के पश्चिमी भागों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। शक शासकों ने शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा को अपने जीते हुए भाग का केन्द्र बनाया, जो उस समय अपनी, धर्म, कला एवं व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। शूरसेन जनपद पर जिन शकों ने शासन किया उनके नाम सिक्कों तथा अभिलेखों द्वारा ज्ञात होते हैं। प्रारम्भिक क्षत्रप शासकों के नाम हगान और हगामष मिलते हैं। कुछ सिक्के केवल हगामष नाम के ही मिलते हैं। हगान और हगामष के सिक्कों पर एक ओर लक्ष्मी तथा दूसरी ओर घोड़े का अंकन मिलता है।922 शूरसेन जनपद से प्राप्त एक शिलालेख पर सं. 72 का ब्राह्मी लेख उत्कीर्ण है, जिसके अनुसार शोडास के राज्यकाल में जैन भिक्षु की शिष्या अमोहिनी ने एक जैन आयागपटट की स्थापना करवायी थी।33 शक शासक शोडास के शासनकाल में जैन एवं बौद्ध धर्म को समान रूप से प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। जैन धर्म का प्रचार-प्रसार अपनी गति से सामान्य जनता तक पहुंचता रहा। शकों की एक शाखा के रूप में कुषाण वंश का मगध पर आधिपत्य स्थापित हुआ। ई. पू. प्रथम शती में भारतवर्ष के साथ सम्पर्क से कुषाणों ने भारतवर्ष की सभ्यता को अंगीकार किया और यहां की संस्कृति में रच-बस गये। शूरसेन जनपद में ब्राह्मण धर्म का अस्तित्व बहुत प्राचीन काल से ही रहा है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक यह जनपद मुख्य रूप से हिन्दू नगरी
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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