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प्रस्तुत पुस्तक 'शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास 600 ई. से 1200 ई.' तक लेखिका का मूलतः शोध-प्रबन्ध था, जिसे पुस्तक का स्वरूप प्रदान किया गया है। यह ग्रन्थ आठ अध्यायों में विभक्त है। पुस्तक में शूरसेन जनपद के नामकरण के उल्लेख के साथ-साथ महावीर युग से लेकर बारहवीं शती. ई. तक जैन धर्म के क्रमागत विकास का वर्णन किया गया है। जैन धर्म एवं कला को विभिन्न युगों में प्राप्त होने वाले राजकीय लोगों के प्रोत्साहन और संरक्षण तथा धार्मिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि का भी उल्लेख किया गया है। शूरसेन जनपद में जैन धर्म के प्रमुख केन्द्रों का उल्लेख है जैसे – कंकाली टीला, सोंख, शौरिपुर, बटेश्वर, अंरिग आदि से जैन कला-कृतियाँ प्राप्त हुई हैं। शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा और मथुरा कला विविधताओं से भरी हुई है, जिसको किसी एक ग्रन्थ में उचित रूप से पिरोना कठिन कार्य है किन्तु इस ग्रन्थ में मूर्तिकला के साथ-साथ वास्तु-कला, सांस्कृतिक उन्नति, भाषा-साहित्य तथा ललित कला पर भी प्रकाश डाला गया है, जो कठिन श्रम और लगन को दर्शाता है। छाया-चित्र भी वास्तविक और अंकन भी महत्वपूर्ण है। यह ग्रन्थ जैन धर्म और कला के विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं विद्वानों को अवश्य ही लाभान्वित करेगा।
प्रो. जे. एन. पाल प्राचीन भारतीय इतिहास
संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद