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________________ 120 शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास शूरसेन जनपद केन्द्र स्थल रहा है। जिसे यहाँ के विभिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक परम्पराओं, मन्दिरों, मूर्तियों एवं अन्य अवशेषों के आधार पर प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। शूरसेन जनपद की संस्कृति को ‘ब्रज संस्कृति' भी कहते हैं। भगवत धर्म के उदय के पश्चात् शूरसेन की राजधानी मथुरा में जैन संस्कृति पर अन्य धर्मों एवं परम्पराओं का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। फलस्वरूप शूरसेन जनपद में जैन संस्कृति के विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने रूढ़िवादी वर्ण व्यवस्था, पाखण्ड, असमानता और धार्मिक कर्म-काण्डों को अस्वीकार कर समता स्थापित करने में अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत किया। भगवान महावीर स्वामी ने आत्म संयम के साधना नियन्त्रण का सिद्धान्त प्रस्तुत किया और समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना की। ___ संस्कृति घटक है- सम+स+कृति। सम का अर्थ है- सम्यक, स का अर्थ है- शोभाधायक तथा कृति का अर्थ है- प्रयत्न। इस प्रकार संस्कृति का अर्थ है- शोभाधायक विवेक सम्मत प्रयत्न।' संस्कृति लोक मांगलिक उपयोगी-प्रयत्नों के मूल में निहित मूल्यों की समष्टि का नाम है। भौतिक जीवनयापन के समुन्नत साधनों से मनुष्य की सभ्यता का आंकलन किया जाता है और लोक मंगलोपयोगी मूल्यों से संस्कृति का मूल्यांकन होता है। ___उच्चतम चिन्तन का नाम ही संस्कृति है। भारत का एक प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र होने के कारण शूरसेन जनपद को प्राचीन काल में अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई। शूरसेन जनपद का सांस्कृतिक सम्पर्क ईरान, यूनान तथा मध्य एशिया के साथ बहुत घनिष्ठ रहा है। शूरसेन जनपद विभिन्न संस्कृतियों के पारस्परिक मिलन का एक बड़ा केन्द्र बना। शूरसेन जनपद के प्रमुख कला केन्द्रों कंकाली टीला, शौरिपुर, बटश्वर, जैन चौरासी, सोंख, बरसाना, मठ, चौबिया पाड़ा और
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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