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________________ 112 शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास एक महत्वपूर्ण स्तूप का शिल्पांकन एक खण्डित प्रस्तर आयागपट्ट पर किया गया है; जिसका नीचे का भाग ही सुरक्षित है।" __ यह महत्वपूर्ण अभिलिखित आयागपट्ट कुषाणकाल का है और कंकाली टीले की देन है। लेख से यह विदित होता है कि एक नर्तक की पत्नी शिवयशा ने अर्हतों की पूजा के लिए दान में दिया था। ___ स्तूप की प्रमुख विशेषताएँ अन्य स्तूप के समान हैं परन्तु इसकी पीठिका की ऊँचाई कम है। फलस्वरूप तोरण तक पहुँचने के लिए चार सीढ़ियाँ पूर्णरूप से सुरक्षित हैं। मुख्य स्तूप के दोनों ओर दो स्तम्भ हैं तथा स्तूप के ऊँचे बेलनाकार शिखर की निम्न तलवेदी ही सुरक्षित है। कुशलता से उत्कीर्ण तोरण के वक्राकार सरदलों के सिरे मुड़ी हुई पूछों वाले मकरों के समान दृष्टिगोचर होता है। दोनों ओर एक स्त्री आकृति एवं एक-एक स्तम्भ अंकित है। स्तम्भों तथा शिलाखण्डों के बीच में जालियाँ निर्मित हैं। निचले सरदल के केन्द्रीय भाग से माला सहित एक कमल-गुच्छ लटक रहा है। ___ एक अन्य लघु स्तूप का अंकन एक तोरण शीर्ष पर दृष्टिगोचर होता है। यह लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित है। यह तोरण शीर्ष कंकाली टीले से प्राप्त हुआ है तथा कुषाण काल की विशेष देन है।" तोरण-शीर्ष अलंकृत है। तीन भागों में विभक्त है तथा बीच में तीन पट्टियाँ हैं। ऊपर कोनों पर उड़ते हुए विद्याधर हाथ में माला लिए हुए हैं। ___ मध्य की पट्टी पर जिन भगवान का लघुरूप अंकित है और दोनों ओर से उपासक अर्चना कर रहे हैं। सबसे ऊपर के भाग में मध्य में स्तूप का शिल्पांकन किया गया है। स्तूप के दोनों ओर उपासक हाथ जोड़े हुए खड़े हैं। ___ सबसे नीचे के भाग में लघु आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं। यह अलंकृत तोरण-शीर्ष तत्कालीन सौन्दर्यता का बोध कराते हैं। ___ लखनऊ संग्रहालय में एक स्तम्भ सुरिक्षत है, जिस पर दांयीं ओर स्तूप का अंकन है।2 स्तूप में एक वेदिका ऊपर एक वेदिका नीचे
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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