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________________ 110 शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास पट्टी पर मत्स्ययुगल, अस्पष्ट आधार पर दो कमान, श्रीवत्स तथा सरावसम्पुट अंकित है। चारों कोनों को चार-चार पत्तियों से अलंकृत किया गया है। दोनों ओर एक-एक स्तम्भ निर्मित है। लेख से विदित होता है कि सिंहनन्दी नामक किसी व्यक्ति ने अर्हत पूजा के लिए आयागपट्ट का निर्माण करवाया था। ___ अध्ययन क्षेत्र से कला के सुन्दरतम उदाहरण के रूप में आयागपट्ट उत्खनन द्वारा प्रकाश में आये हैं। ये आयागपट्ट अलंकृत एवं शिल्पकारों की भावनाओं का अत्यन्त उत्तम प्रदर्शन है। मथुरा कला शैली के अन्तर्गत निर्मित आयागपट्टों पर प्रतीकों एवं वास्तु शिल्प का अंकन दृष्टव्य है।99 ____ एक चौकोर आयागपट्ट जो लाल बलुए पत्थर पर निर्मित है। इस पर लेख उत्कीर्ण किया गया है और उससे यह विदित होता है कि अचला ने इस आयागपट्ट को अर्हत पूजा के लिए स्थापित करवाया था। यह प्रथम शती ई. पू. का है। ___ इसमें खण्डित श्रीवत्स, स्वास्तिक, कमल, मत्स्ययुग्म, जिनके मुँह में माला है, शृंगार, निधिसहित पात्र, भद्रासन तथा त्रिरत्न अंकित है। आयागपट्ट घिसकर विरूपित हो चुका है। वर्तमान में यह राज्य संग्रहालय में संग्रहीत है। साहित्य की भाँति जैन कला का प्रमुख लक्ष्य आत्मा को परमात्मा के रूप में परिवर्तित करना। कला का प्रमुख कार्य यह है कि अनुयायियों के हृदय में धैर्य, शान्ति, शुचिता, अनाशक्ति, दानशीलता, कर्त्तव्य परायणता और श्रद्धा- भक्ति के साथ सादगी तथा त्याग की भावना का बीजारोपण करना है। ___ कंकाली टीले से प्राप्त एक कुषाण कालीन शिलालेख एक खण्डित प्रतिमा की चरण- चौकी पर उत्कीर्ण है। प्रस्तर लेख में उल्लिखित है कि अर्हतों के मन्दिर में महावीर स्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा और एक जिनालय का निर्माण करवाया गया।"
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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