SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन है तथा दाहिना कान एवं नाक भग्न है । केश घुँघराले हैं तथा चरण - चौकी पर बेल की आकृति में फूल बने हैं । यह लाल बलुए पत्थर पर निर्मित मथुरा कला शैली की विशेष कृति है। वर्तमान में यह राज्य संग्रहालय लखनऊ के मुख्य द्वार पर अवस्थित है। 88 सतना जिले से आठवीं शती का पद्मासन मुद्रा में पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्राप्त हुई । तीर्थंकर मूर्ति का सुगठित रूपांकन, मुख मण्डप पर ध्यानस्थ शांत तथा आध्यात्मिक दीप्ति का विकिरण और देव अनुचरों की कोमल कमनीय मुद्रा का अंकन उल्लेखनीय है। 10 मध्य प्रदेश के गुर्गी से नवीं शती की पार्श्वनाथ प्रतिमा इलाहाबाद संग्रहालय में सुरक्षित है । परन्तु इसमें सर्प की कुण्डलियाँ चरणों तक बनी है। गुप्तोत्तर काल की प्रतिमाओं का अभाव परिलक्षित होता है । नवीं शती ई. की नेमिनाथ की प्रतिमा के परिकर में गणेश, कुबेर, बलराम, कृष्ण एवं अष्टमातृकाओं का अंकन किया गया है। 12 अम्बिका नामक यक्षी पद्मासन मुद्रा में आसीन है। अम्बिका का वाहन आसन के नीचे अंकित है । इनका दाहिना हाथ अभयमुद्रा में और बायें हाथ में पुत्र है। दाहिने पार्श्व में अम्बिका का दूसरा पुत्र भी उपस्थित है। पीठिका पर एक पंक्ति में आठ स्त्री आकृतियाँ नमन मुद्रा में उत्कीर्ण हैं और कुछ आकृतियों के हाथों में फूल एवं अन्य सामग्री हैं । अम्बिका के शीर्ष भाग की जिन आकृति के पार्श्वों में त्रिभंग मुद्रा में खड़ी बलराम एवं कृष्ण की चतुर्भुज प्रतिमाएं उत्कीर्ण की गई हैं। अम्बिका नेमिनाथ की यक्षी है । 13 देवी के दाहिनी पार्श्व में ललित मुद्रा में • गजमुख गणेश जी का अंकन द्विभुज के रूप में किया गया है जिनके हाथों में अभय मुद्रा एवं मोदक पात्र है । वाम पार्श्व में फल एवं धन के थैले के साथ कुबेर का अंकन दृष्टव्य है।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy