________________
संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य बताया है कि -
___ “जाए वेलाए कालगओ दिया वा राओ वा सो ताए चेव वेलाए नीणियव्वो, निक्कारण त्ति एवं ताव निक्कारणे । 'कारणे भवे निरोहो' त्ति कारणे पुणो भवे निरोहो, निरोहो नाम अच्छाविज्जइ।"
यह बात भी हमें संमूर्छिम मनुष्य की विराधना से बचने की प्राचीन परंपरा ज्ञात करती है। . मात्रक को स्थापित रखने के पीछे परंपरा की प्रसिद्धि
圖靈圖圖圖圖圖圖圖圖圖圖圖圖圖圖圖圖题
रही बात मात्रक को स्थापित रखने की। स्पष्ट बात है कि वह कारणिक आपवादिक विधान है। जब व्यंतरादि के कारण से वह मृतदेह पुनः उठे तब उसे शांत करने का सुलभतम साधन प्रस्रवण के अलावा ओर क्या हो सकता है ? मृतदेह के उठने के बाद यदि साधु कायिकी करने जाए, कायिकी का अवश्य होना और बाद में उसे छिड़कना - यह बात सर्वत्र 'प्रेक्टिकल' शक्य नहीं है। यदि उस वक़्त किसीको लघुशंका ही न हो तो तत्काल प्रस्रवण लाना कहाँ से ? परिणामतः कायिकी का मात्रक स्थापित रखने का विकल्प ही शेष रहता है। उस वक़्त मात्रक को पुनः पुनः हिलाने से संमूर्छिम मनुष्य की योनि का बनना वहाँ रोका जा सकता है।
संमूर्छिम मनुष्य योनिध्वंस विचारणा
मात्रक को हिलाते रहने से उसमे संमूर्छिम मनुष्य की योनि का न बनना - यह बात कल्पनाशिल्पनिर्मित नहीं। परंतु आगमिक मान्यताओं के दृढ अवलंबन से रचित है।
निशीथभाष्य में कहा गया है कि - “जोयणसयं तु गंताऽणाहारेणं तु भंडसंकंती।