SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी ८३ विष एवं गरल अनुष्ठान शास्त्रकारों ने हेय कहे हैं । संसारवर्धक कहे हैं। जैसे विष मारनेवाला है, वैसे ही यह दो अनुष्ठान भी सद्य ( तुरंत ) एवं कालांतर में मारनेवाले हैं । इसलिए मुनिश्री की बात निराधार है। अपनी मान्यतामें आनेवाली आपत्तियों को टालने के लिए उन्होंने जो प्रयत्न किया है, वह विफल हुआ है । फिर भी उन्होंने शास्त्रकारों व हजारों पूर्वाचार्यों द्वारा आचरित परम्परा को गलत कहने का दुःसाहस मजे से किया है। उनकी मति उन्हें ही मुबारक । भव्यात्माओं से इतनी ही सिफारिश हैं कि, निराधार बातों के आधार पर चलने में आत्मा का अहित हैं । इसलिए शास्त्र एवं शास्त्रमान्य परम्परा से जुड़े रहने में ही हित है। जो कार्य पूर्वधरों के काल से अब तक किसी भी सुविहित महापुरुष को गलत नहीं लगा, उसी कार्य को गलत कहने का दुःसाहस त्रिस्तुतिक मतवाले किस आधार पर करते हैं, यह आज तक शास्त्राधार से सिद्ध नहीं कर सके हैं। फिर भी हम शास्त्रसापेक्ष हैं, ऐसा जबरदस्त दिखावा करते हैं । इसलिए भव्यात्माओं से उनकी बातों में नहीं आने की सिफारिश है। मुनिश्री जयानंदविजयजी की तीन पुस्तकों में एवं त्रिस्तुतिक मत के अन्य लेखकों की पुस्तकों में सम्यग्दृष्टि देव-देवी के लिए काफी कुछ लिखा गया है। मिथ्यादृष्टि घंटाकर्ण आदि की काफी खबर ली है। किन्तु जो सम्यग्दृष्टि हैं, ऐसा किसी शास्त्राधार से आज तक सिद्ध नहीं हुआ है । ऐसे नाकोड़ा भैरव के लिए एक भी शब्द त्रिस्तुतिक मतवालोंने नहीं कहा हैं । कारण स्पष्ट है कि, उनके विषय में बोलने गए तो मारवाड़ में उनकी आजीविका जोखिम पड़ सकती हैं। ऐसा सुविधाजनक रवैया रखनेवालों को शास्त्रों की बात करनेमें लज्जा आनी चाहिए। ॥ सुज्ञेषु किं बहुना ॥ इसलिए अनुष्ठानों के काल्पनिक निराधार भेदों में फंसे बिना शास्त्रकारोंने
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy