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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
वादीवेताल पू.आ.भ.श्री शांतिसूरि महाराजाए स्वरचित चैत्यवंदन महाभाष्यमां (चैत्यवंदनना विषयमां) उपरोक्त वात करी छे. उपलक्षणथी ते सर्व धर्मक्रियाओ माटे संगत थाय छे.
तीसे करणविहाणं, नज्जइ सुत्ताणुसारओ किं पि। संविग्गायरणाओ, किंची उभयं पि तं भणिमो ॥१५॥
-चैत्यवंदन करवानो कोईक विधि सूत्रानुसारे जाणवामां आवे छे. अने कोईक विधि संविग्न महापुरुषोनी आचरणाना अनुसारे जाणवामां आवे छे. (आथी) अमे अहीं बनेना अनुसारे चैत्यवंदननी विधि कहीऐ छीऐ.
आ प्रमाणे संविग्नोनी आचरणा पण प्रमाणभूत छे. श्रीसंघाचार वृत्तिमां पू.आ.भ.श्री धर्मघोषसूरिजी म. लखे छे के, ललितविस्तरा सिवाय अन्य कोई पण ग्रंथमां चैत्यवंदननी क्रमथी विधि जोवा मणती नथी.
आ पाठथी ऐ पण सिद्ध थाय छे के, जे जे ग्रंथोमां चैत्यवंदनानी विधि लखी छे, ते ललितविस्तरा ग्रंथना अनुसारे ज लखी छे. ___ ललित विस्तरा ग्रंथमां चैत्यवंदनमां चतुर्थ स्तुति (वैयावृत्त्य करनारा, शांति करनारा, सम्यग्दृष्टि अने समाधि आपनारा देवताओना स्मरण माटे कराती चतुर्थ स्तुति) ग्रहण करेल छे. आ सिवाय अन्य ग्रंथोमां पण चार थोयथी चैत्यवंदनानी विधि बतावी छे. ____ योगशास्त्र आदि अनेक ग्रंथोमां प्रतिक्रमणनी आद्यंतनी (देवसि प्रतिक्रमणनी प्रारंभनी अने राई प्रतिक्रमणनी अंतनी) चैत्यवंदना चार थोयथी ज करवानी विधि बतावी छे.
देवसि प्रतिक्रमणमां श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवताना कायोत्सर्ग करवानी अने तेनी थोय बोलवानी विधि पण बतावी छे.
वंदित्तासूत्र ५० गाथात्मक छे. 'श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र' ग्रंथनी 'वृंदारुवृत्ति' अने 'अर्थदीपिका' आ बंने टीकाओमां वंदित्तासूत्रने ५० गाथात्मक ज जणावेल