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________________ ६८ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी वर्तमान जन्ममें मोक्षमार्ग की साधना पूर्ण नहीं होगी। इसलिए अगले जन्ममें भी जिनधर्म की प्राप्ति हो यह साधक की मांग होती है। जिनधर्म व मोक्ष के बीच कारणकार्य भाव है। बोधि व जिनधर्म की प्राप्ति दोनों एक ही है। इसलिए बोधि मांग में भी अभेद उपचार से मोक्ष की ही मांग है। प्रत्येक धर्मक्रिया के समय 'मुझे मोक्ष चाहिए, मुझे मोक्ष चाहिए' यह नहीं बोलना होता है। परन्तु सम्यग्दर्शन आदि मोक्षमार्गके उपायोंकी प्राप्ति व उसकी शुद्धि विविध धर्मक्रियाओं के समय मांगी जाती है उसका उद्देश्य रखा जाता है। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि, किसी भी क्रिया में मोक्ष का उद्देश्य जीवंत नहीं था । क्योंकि, प्रत्येक धर्मक्रियाके समय अंतिम लक्ष्य तो मोक्ष ही होता है। इसी प्रकार देववंदन के विषय में सोचें तो श्री अरिहंत परमात्मा, सभी श्री अरिहंत परमात्मा अथवा स्थापना अरिहंत, आगम तथा सम्यग्दृष्टि देव-देवी सम्बंधी कायोत्सर्ग व उनकी स्तुति बोली जाती है। इन चार में से दो में जिनभक्ति है। तृतीय में आगम भक्ति है और चतुर्थमें औचित्य पालन है। (सहायक तत्वों के प्रति औचित्य है।) प्रथम दो में रत्नत्रयीकी मांग है। तृतीय में सम्यग्ज्ञानकी मांग है। चतुर्थमें समाधि-बोधि आदि की मांग है। चारों में अलग-अलग मांग है। फिर भी अंतिम लक्ष्य मोक्ष ही है। इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि, चारों कायोत्सर्ग व स्तुति बोलने में लक्ष्य मोक्ष का ही है। ___ इस प्रकार विचार करने से अलग अलग ग्रंथकारों की अलग-अलग बातों का समन्वय हो जाता है। जब किसी को प्रश्न होगा कि, तो फिर श्राद्ध प्रतिक्रमणसूत्रकी टीका आदि में मोक्ष मांगने से क्यों रोका गया है? इसका जवाब यह है कि, प्रत्येक धर्मक्रियामें लक्ष्य मोक्ष होने के बावजूद जिसमें जो देने का सामर्थ्य (शक्ति) हो वह मांगा जाए, तो
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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