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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
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भावार्थ : अब दूसरी भावपूजा बताई गई है। यह तीर्थंकरों के सद्भूत लोकोत्तर गुणोंका वर्णन करनेवाली वचनरचना स्वरुप स्तुतियों से होती है। अन्य स्थल पर कहा गया है कि, 'चैत्यवंदन करने योग्य स्थानमें खडे रहकर अनेक प्रकार की स्तुतियों से देववंदन करना, इसका नाम भावपूजा है। (यह पूजा का तीसरा भेद है।)
___ उपरोक्त पाठ से सिद्ध होता है कि, सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध हो अथवा न हो केवल देववंदन भी भावपूजा है । इसलिए लेखकश्रीकी उपरोक्त बात असत्य है।
यहां पाठक विचार कर सकतें है कि, ग्रंथकार परमर्षियों के टंकशाली वचनों से बचने के लिए त्रिस्तुतिक मक के लेखक कैसी उल्टी-सुल्टी बातें करते हैं। इन पर विश्वास करें या न करें यह पाठक स्वयं विचार करें।
प्रश्न : सामायिक लेने से पहले इर्यावही करने की विधि है कि सामायिक लेने के बाद इरियावही करने की विधि है?
उत्तर : महानिशीथ सूत्रमें स्पष्ट कहा गया है कि, इरियावही प्रतिक्रमणके बिना सामायिक आदि किसी भी धर्मक्रिया करनी उचित-युक्ति संगत नहीं है।
प्रश्न : आवश्यक चूर्णिमें आपके कथन से बिल्कुल अलग कहा गया है, तो सच किसे मानें?
उत्तर : इस प्रश्न का उत्तर सेन प्रश्नोत्तरकार पू.आ.भ.श्री सेनसूरिजी महाराज के शब्दों में ही देखें।
पू.आ.भ.श्री सेनसूरिजी म. प्रश्न-१४० के उत्तरमें कहते हैं कि,
"तथा सामायिकाधिकारे पूर्वमीर्यापथिकीप्रतिक्रमणं शास्त्रानुसार्युत पश्चादिति प्रश्नोऽत्रोत्तरं ॥ सामायिकाधिकारे महानिशीथहारिभद्रियदशवैकालिकबृहदवृत्याद्यनुसारेण युक्त्यनुसारेण सुविहितपरंपरानुसारेण च पूर्वमीर्यापथिकी प्रतिक्रमणं युक्तिमत्प्रति