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________________ १४२ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी इस प्रकार के कदाग्रह मात्रसे अभिनिविष्ट दृष्टिवाले प्रलाप करते हैं, उनकी कैसी गति होगी? क्योंकि, सर्वज्ञ प्रणीत एवं प्राचीन श्रुतस्थवीर भगवंतो द्वारा आचरित मार्ग का लोप करते हैं। उपर देख चुके वृंदारुवृत्ति, प्रतिमाशतक, विचारामृत संग्रह तथा अर्थदीपिका टीका के पाठोंसे स्पष्टहोता हैं कि, वंदित्तु सूत्र की रचना पू.श्रुतस्थवीर भगवंत ने की है और वह भी पू.गणधर भगवंत कृत श्रुत का आलंबन लेकर की है। इसलिए यह सूत्र गणधर कृत भी कहा जा सकता है। चूर्णिकार, भाष्यकार व अनेक टीकाकार महर्षि श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र को ५० गाथात्मक ही मानते हैं। सूत्रकार, चूर्णिकार, भाष्यकार व टीकाकार परमर्षि वंदित्तासूत्रकी ४७वीं गाथा के उत्तरार्ध में निहित सम्मदिट्ठी देवा' पद को ही मान्य करते है। टीकाकारश्री इस पदको मान्य करके ही, इस पद की सार्थकता बताते हैं। किसी भी ग्रंथमें 'सम्मदिट्ठी देवा' पद के स्थान पर 'सम्मत्तस्स य सुद्धि' पद ग्रहण किया हो ऐसी साक्षी नहीं मिलती है। मरण समाधि पयन्नाका इन ग्रंथ में अन्य अभिप्राय में कहा गया 'सम्मत्तस्स य सुद्धि' पद वंदित्तासूत्र की ४७वीं गाथा में रखनेवाला सूत्रभेदक है। अर्थात् उत्सूत्रक है। सम्यग्दृष्टि देवताओं से समाधि-बोधि मांगने में दोष नहीं है। वे विघ्नों का नाश करके समाधि-बोधि देने में समर्थ हैं । अर्थात् सोपक्रम कर्म के उदय से साधक की साधनामें आए विघ्नों का नाश करने के लिए सम्यग्दृष्टि देवता समर्थ हैं।
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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