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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १३९ का आलंबन लेकर रचा होने से सिद्धांत ही कहलाता है। इस प्रकार तात्पर्य है तथा वृद्ध समुदाय है कि, जो सूत्र अज्ञातकर्तृक हो, परन्तु वह सूत्र प्रवचन (श्रीसंघ) में सर्वमान्य हो तो उसके कर्ता के तौर पर श्री सुधर्मास्वामीजी को मानें । उपर कहा गया है कि, अनंग प्रविष्ट श्रुत के कर्ता के तौर पर श्रुतस्थवीर समझें और प्रतिमा शतक में कहा गया है कि, अज्ञात सूत्र का कर्ता श्रीसुधर्मास्वामीजीको मानें । इन दोनों बातों का समन्वय ऐसे करें कि, श्रुतस्थवीर भी अनंग प्रविष्ट श्रुतकी रचना गणधरकृत आगम का आलंबन लेकर ही करते हैं। इसलिए श्रुतस्थवीर की रचना को गणधरकृत कहने में कोई दोष नहीं।) इस प्रकार अच्छे ढंगसे सिद्धांत के रहस्य को जाननेवाले पूर्वकालीन बहुश्रुतों ने भी श्रावकों के प्रतिक्रमणादि आवश्यक को सिद्धांत के तौर पर उपदेशित किया होने से सिद्धांत कहा गया है। • विचारामृत संग्रह में श्राद्ध प्रतिक्रमणसूत्र के लिए शंका-समाधान दिए गए हैं जो निम्नानुसार हैं। ___ "ननु साधुप्रतिक्रमणाद्भिन्नं श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रमयुक्तं, नियुक्तिभाष्यचूर्णादिभिरतंत्रितत्वेनानार्षत्वात्, नैवं, आवश्यकादिदशशास्त्रीव्यतिरेकेण नियुक्तिनामभावेनौपपातिकाद्युपांगानां च चूर्ण्यभावेनानार्षत्वप्रसङ्गात्, ततः प्रतिक्रमणमप्यस्ति तेषां।" __ भावार्थ : शंका : साधु प्रतिक्रमण सूत्र से भिन्न श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र अयुक्त है। (योग्य नहीं है।) क्योंकि, श्राद्ध प्रतिक्रमणसूत्र पर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि आदि रचे न होने से वे सूत्र आर्ष प्रणीत नहीं हैं। (अनार्ष हैं।) समाधान : आप ऐसा न कहें । क्योंकि, आवश्यक आदि दस ग्रंथो को छोड़कर शेष ग्रंथो की नियुक्ति नहीं है। इसलिए शेष ग्रंथो को अनार्ष मानने की आपत्ति आएगी और औपपातिक आदि उपांगों की चूर्णि नहीं है। इसलिए
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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