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________________ ११८ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी बल्कि वह मिथ्याग्रहसे प्रवर्तित हुआ है। ____ (७) चतुर्थ स्तुति की आचरणा श्रुत का उल्लंघन करके प्रवर्तित नहीं हुई है। क्योंकि, श्रुत में देव-देवी के कायोत्सर्ग के विधान हैं। जबकि त्रिस्तुतिक मतकी आचरणा श्रुत का उल्लंघन करके स्वतंत्र मति कल्पना से प्रवर्तमान हुई है। इस प्रकार उपरोक्त विचार से फलित होता है कि, चतुर्थ स्तुतिकी आचरणा शास्त्र मान्य सुविहित परम्परा है और त्रिस्तुतिक मतकी आचरणा शास्त्रमान्य सुविहित परम्परा से विरुद्ध है। उपरोक्तानुसार संविग्नगीतार्थादि गुणवान् महापुरुषों द्वारा अशठभावसे प्रवर्तित आचरणा भी आदरणीय है-सेवनीय है। इस प्रकार की गीतार्थों की आचरणाका जो लोप-नाश करते हैं, विरोध करते हैं, उनका स्वयं नाश होता है, यह सुयडांगसूत्र की नियुक्ति में पू.भद्रबाहुस्वामीजीने कहा है। यह पाठ इस प्रकार है। आयरिए परंपराए, आगयं जो च्छेय बुद्धिए। कोइ वोच्छेय वाइ, जमालिनाशं स नासेइ ॥१॥ -आचार्यों की परम्परा से जो आचरणा चली आ रही है, उसका उच्छेद करे अर्थात् न मानने की जो बुद्धि करे, तो जमालिकी तरह नष्ट हो जाता है। ___ भगवान की आज्ञा की (शास्त्रकथित वचनोंकी) तरह ही सुविहित परम्परा भी मार्ग है। इस मार्गका उल्लंघन करनेवाले भवाटवी को पार नहीं कर सकता। श्री अरिहंत परमात्मारुपी सूर्य तथा सामान्य केवलज्ञानीरुपी चंद्रके विरहमें शास्त्र तथा शास्त्रमान्य सुविहित परम्परा हमारे लिए (वर्तमानमें) परम आधाररुप है। शास्त्र व शास्त्रमान्य सुविहित परम्परा चतुर्थ स्तुति को मान्य करती है, फिर भी त्रिस्तुतिक मतवाले कुतर्क करके इस मान्यता का खंडन करते हैं, यह कतई उचित नहीं। प्रश्न : क्या अभिधान राजेन्द्रकोष में प्रतिक्रमण की विधि बताई है?
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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