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________________ १०० त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी हैं, वे जागृत होते हैं। मात्र वैयावृत्त्य करनेवाले प्रसिद्ध देवताका ही कायोत्सर्ग नहीं किया जाता हैं। बल्कि शांति स्थापित करनेवाले (शांतिकराणं,) इत्यादि देवताओं का भी कायोत्सर्ग ग्रहण करें । प्रभूतकाल से अर्थात् काफी लंबे समय से पूर्वधरों के काल से पूर्वोक्त देवताओं का प्रतिदिन पूर्वाचार्य कायोत्सर्ग करते आए हैं । इसलिए पूर्वोक्त देवताओं का नित्य कायोत्सर्ग किया जाता हैं। यह गाथार्थ है । प्रश्न : श्रुतदेवता का कायोत्सर्ग करने से क्या लाभ होता है ? और श्रुतदेवताको न मानने से क्या नुकसान होता है ? उत्तर : आवश्यकसूत्रमें कहा गया है कि, श्रुतदेवताको न मानने से, उनके विषयमें कुछ भी बोलने से उनकी आशातना होती है, और प्रशस्त मनसे श्रुतदेवताका आलंबन करके कायोत्सर्ग करते हैं, उनका कर्मक्षय होता है। इस संदर्भ में पाठ इस प्रकार है। “सुयदेवयाए आसायणाए ॥ व्याख्या श्रुतदेवतायाः आशातनया । क्रिया तु पूर्ववत् ॥ आशातना तु श्रुतदेवता न विद्यते अकिंचित्करी वा । न ह्यनधिष्ठितो मौनीन्द्रः खल्वागमः अतोऽसावस्ति न चाकिंचित्करी तामालम्ब्य प्रशस्तमनसः कर्मक्षयदर्शनात् ।” भावार्थ : श्रुतदेवताकी इस प्रकार से आशातना होती है । " श्रुतदेवता नहीं है अथवा वे हैं तो उनकी कोई शक्ति नहीं है। अर्थात् श्रुतदेवता नहीं हैं अथवा हैं तो अकिंचित्कर हैं" -ऐसा कहनेवाले श्रुतदेवताकी आशातना करनेवाले होते हैं। क्योंकि, भगवान द्वारा प्ररुपित आगम अनधिष्ठित नहीं हैं । अर्थात् भगवान द्वारा प्ररुपित आगमों के अधिष्ठाता देवता हैं । इसलिए श्रुतदेवता की विद्यमानता है। श्रुतदेवताको अकिंचित्कर कहना मिथ्या है। क्योंकि, जो श्रुतदेवता का आलंबन
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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