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________________ की यह चतुर चोकड़ी परस्पर प्रेम मग्न हो, पुण्य-मूर्ति उत्तमकुमार के | पवित्र प्रेम की सच्ची अधिकारिणी बन गयी थीं। ___ महाराजा नरवर्मा और सेठ महेश्वरदत्त अपनी-अपनी सम्पत्ति उत्तमकुमार को सौंपकर दोनों धर्म की आराधना करने लगे । वे परमार्थ दृष्टि से आत्मस्वरूप को समझकर, आत्मा और परमात्मा की एक्यता अनुभव करते हुए अखण्ड सुख पाने के कार्य में तत्पर हो गये। “स्वार्थ दृष्टि से यदि देखा जाय तो इसलोक में कुछ सुख है ही नहीं । जगत् के प्राणीमात्र का सुख कैसे बढ़े, आत्मसुख प्राप्त करते हुए दूसरे को सुख कैसे हो ?" इत्यादि विषय पर वे निरन्तर विचार करते रहते थे। इन विचारों को सफल बनाने के साधन प्राप्त करके उसके प्रयत्न में रहते और उस प्रयत्न से मन में सन्तोष धारण करने को ही जीवन की सफलता मानते थे । अन्त | में वे श्रावक जीवन को सार्थक करते हुए अनन्त संसार से पार हो गये ।। उत्तमकुमार अपने पुण्य के प्रभाव से मोटपल्ली नगर का राजा बना था। वह धर्म और नीति पूर्वक अपनी प्रजा का पालन करता था । अपनी राज्य लक्ष्मी | का सातों क्षेत्रों में उपयोग करता और इसी में अपना जीवन सफल मानता था । यही कारण था कि उसके राज्य में प्रजा की धार्मिक और सांसारिक उन्नति विशेष | देखी जाती थी । बच्चे से लगाकर बूढ़े तक सारी प्रजा, धर्म तथा नीति मार्ग पर | चलने वाली, राजभक्त, धार्मिक' और आत्मिक सुख चाहनेवाली थी । बालक, मंडली, प्रजा, विद्या और कलाओं का सम्पादन करने में तत्पर रहती थी, युवक लोग धर्म तथा नीति के अनुसार चलते हुए उद्योग और कला को आश्रय देते तथा| वृद्ध प्रजा आत्मिक सुख अनुभव करने के लिए उत्सुक रहती थी ।। यद्यपि राजा उत्तमकुमार चार चतुर स्त्रियों की चौकड़ी में रातदिन रहता| था । वह चार रमणियों के शृङ्गार रस का पान करता था और सब प्रकार के साहित्य का प्रेमी था तथापि उसकी मनोवृत्ति धर्म और वैराग्य की ओर अधिक दिखाई | पड़ती थी। उसके हृदय में सदा पवित्र भावनाएँ उत्पन्न हुआ करती थीं । वह अनेक बार अपनी चतुर स्त्रियों के सामने अपने पवित्र विचार इस प्रकार प्रगट किया 87
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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