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अठारहवाँ परिच्छेद
विष प्रयोग एक अत्यन्त सुन्दर वाटिका है, जो विविध भाँति के पुष्प वृक्षों से सुशोभित है । शीतल मन्द, और सुगंधित पवन उसमें चारों ओर बह रहा है । उस वाटिका में भ्रमण करने वाले मनुष्य, इस मधुर और सुख स्पर्श वायु का आनन्द लेते हुए हृदय में अत्यन्त प्रसन्न हो रहे हैं । कोयल, मयूर, मैना और तीतर अपने मधुर कंठ से इस वाटिका को संगीतमय बना रहे हैं । वाटिका के बीच में बने हुए अंगूर-बेल के मंडप और जहाँ-तहाँ बनाये हुए फव्वारे वहाँ पर घूमनेवाले मनुष्यों को विश्राम दे, आनन्दित कर रहे हैं।
__इसी वाटिका में एक प्रौढ़ यौवना सुन्दरी भी घूम रही है । उसके एक हाथ में डलियाँ (पुष्प चंगेरी) है और दूसरे हाथ से वह विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पुष्पों को तोड़कर डलियाँ में रखती जा रही है । पुष्प चुनते हुए यह अपने सुमधुर कण्ठ से मनोहर गीत भी गाती-जाती है । कभी-कभी मकरन्द के लोभी भौंरे फूल पर से उड़-उड़कर उस रमणी को घबरा देते हैं । इसी समय वहाँ एक अधेड़ उम्र का पुरुष भी कहीं से आ पहुँचा । वह उस सुन्दरी को देखकर उसके | पास आया और खड़ा हो गया।
उस सुन्दरी ने डरते-डरते पूछा - "भाई ! तुम कौन हो ? और यहाँ मेरे पास क्यों आये हो ?" उस अधेड़ पुरुष ने अपने हृदय का आशय प्रकट करते हुए कहा - "बहिन ! मैं एक मुसाफिर हूँ । किसी कारणवश घूमता-फिरता इधर आ निकला हूँ।" सुन्दरी ने उसका असली आशय जानने की इच्छा से प्रश्न किया, "तुम्हारा ऐसा क्या काम है जिसके लिए तुम खास करके यात्रा करने निकले हो ?" अधेड़ पुरुष ने पूर्ण विश्वास दिलाते हुए कहा - "मेरा कार्य तो साधारण है, परन्तु उसके लिए साहस की अत्यन्त आवश्यकता है । यदि कोई इस कार्य को करने के लिए तैयार हो तो मैं उसमें जितना भी हो सकेगा उतना द्रव्य खर्च
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