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________________ नरवर्मा ने नवजीवन प्राप्त किया हो या अमृत से सिंचित हुआ हो । तत्काल वह सावधान होकर बोला - "हाँ जाओ, उस राजकुमार को जल्दी यहां लेकर आओ।" राजा की आज्ञा पाते ही मुख्य मंत्री स्वयम् उठकर द्वार पर पहुँचा और उस राजकुमार को महाराजा नरवर्मा के पास ले आया । उसे देखते ही राजा ने | पहिचान लिया । वह उत्तमकुमार था । महाराजा ने राजकुमारी के लिए बनवाये हुए महल में उससे परिचय प्राप्त किया था । राजा उसकी शिल्प विद्या में निपुणता देखकर बहुत ही प्रसन्न हुआ था। उत्तमकुमार ने महाराज को आते ही प्रणाम किया । उसे देखकर राजा बहुत ही प्रसन्न हुआ और कहने लगा - "राजकुमार ! राजपुत्री के राज महल-निर्माता विश्वकर्मा आपही तो हैं । आपमें सब प्रकार की निपुणता देखकर मैं बहुत ही सन्तुष्ट हूँ । मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप मेरी इस पुत्री को अवश्य ही जीवन दान देंगे। महानुभाव ! कृपा करके इस कन्या को जीवन दान दीजिए । इस राजबाला को जीवन दान प्रदान करने से आपका हमारे राज परिवार पर बड़ा ही उपकार होगा । यद्यपि मैं आप के इस महान-उपकार का बदला किसी तरह भी नहीं चुका सकूँगा तथापि मुझसे हो सकेगी उतनी कृतज्ञता प्रकट करने में मैं कदापि नहीं चूकूँगा । अब आप शीघ्रही अपने किसी प्रयोग से राजकन्या को जीवित कीजिए।" देर करने का मौका नही है।" राजा के मुख से ऐसी बातें सुन कर उत्तमकुमार उस राजकन्या के पास आया और उसने तुरन्त ही गारुडी मंत्र का महाप्रयोग आरंभ किया । थोड़ी ही देर में तिलोत्तमा निर्विष होकर उठ बैठी, और उसने सब से पहिले अपने उपकारी कुमार को प्रणाम किया; बाद में पिता-माता इत्यादि को क्रमशः प्रणाम किया । | राज-पुत्री को होश में देखकर उसका पिता अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसकी आँखों के |दुःख भरे आँसू, आनन्द के रूप में बदल गये । आनन्द और हर्ष के रंग में रंगे हुए | राजा नरवर्मा ने अपनी प्रिय पुत्री को हृदय से लगा लिया । इसके बाद उसने | प्रेमाश्रु गिराते हुए उत्तमकुमार का अन्तःकरण से अत्यन्त उपकार माना । चारों 53
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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