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________________ किन्तु राजकुमारी का जहर नहीं उतरा । अन्त में उन चतुर वैद्यों ने चिकित्सा कर के कहा कि, किसी - "गारुड़ी विद्या" के जानकार को बुलाया जाय तो राजकुमारी अच्छी हो सकती है। - - H चौदहवाँ परिच्छेद उपकार का बदला ___ राजा नरवर्मा शोकाकुल बैठा है, उसके आस-पास मंत्री, सामंत और दूसरे राज कर्मचारी बैठे हुए राजा के शोक से दुःखी हो रहे हैं । राजकुमारी तिलोत्तमा के शरीर में सर्प विष फैलता जा रहा है, उसकी चेतन शक्ति लुप्त होती जा रही है। परंतु औषधियो के प्रयोग के कारण कुछ जबान खुली तब उस मरणासन्न तिलोत्तमा ने मन्द स्वर में अपने पिता से कहा - "पिताजी ! अब मैं इस संसार की यह छोटी सी मुसाफिरी करके परलोक में जाती हूँ। मेरे हृदय की वासनाएँ अपूर्ण है; परन्तु उन्हें पूर्ण समझकर मैं अपने हृदय में से उन्हें निकाल देती हूँ। और सब वासनाएँ मेरे चित्त से अलग हो गयी हैं, सिर्फ एक वासना मेरे हृदय में बनी रहती है, उसे यदि आप पूर्ण करने का वचन दे तो अन्त समय में मेरे मन को शान्ति प्राप्त हो।" अपनी पुत्री के यह वचन श्रवण कर राजा नरवर्मा रोते हुए कहने लगे - “बेटी ! किसलिए तूं निराश होती है ! तेरी प्राण रक्षा के लिए मैंने अभी बहुत से | उपाय किये हैं । तुझे जीवन प्रदान करने वाला कोई न कोई वीर पुरुष यहाँ निकल ही आयेगा । तेरे जीवन के लिए यह मेरा समृद्धि युक्त राज्य तथा मैं मर-मिट जाने के लिए तैयार हूँ। मैंने इस विषय का नगर में ढिंढोरा फिरवा दिया है । बेटी ! तूं इतनी मत घबरा । तुझे अच्छा करने वाला कोई न कोई नगर में अवश्य ही| निकलेगा। तेरे हृदय में जो कुछ भी वासना अथवा आशायें हैं, वे सब धर्म के प्रभाव से सफल होंगी। धीरज रखकर पंचपरमेष्ठी का स्मरण कर, यह महामंत्र तेरे जीवन | की रक्षा करेगा।" पिता के यह वचन सुनकर तिलोत्तमा ने पहिले से भी अधिक
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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