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________________ धनपाल का पाण्डित्य 87 पुरुष को सदा अनिवार्यतः नीति का पालन नहीं करना चाहिये । विधि के सहायक होने पर साहसी पुरुष की अनीति भी फल प्रदान करती है । राजा मेघवाहन ने नीतिशास्त्र में विशेष अध्ययन किया था। समरकेतु को सुविदित दण्डनीतेः' (पृ. 102) कहा गया है । दण्डनीति को राजा की प्रतीहारी के समान बताया गया है । नीतिशास्त्र को बुद्धि को तीक्ष्ण करने वाली कसौटी कहा गया है। दो स्थानों पर राज्यनीति का उल्लेख किया गया है। राज्यनीति के समान उसमें वर्ण एवं समुदाय को यथाविधि स्थापित कर दिया गया था । राज्यनीति में सत्री अर्थात् गुप्तचर के द्वारा परराष्ट्र के समाचार देने पर धन की प्राप्ति होती थी। नीतिमार्ग को तीन शक्तियों से अधिष्ठित कहा गया है । ये तीन शक्तियां प्रभाव, उत्साह तथा मन्त्र हैं । षड्गुणों का उल्लेख किया गया है। मेघवाहन षड्गुणों के प्रयोग में चतुर था।10 सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वंघीभाव व मन्त्र ये छः गुण कहे गये है ।11 मेघवाहन ने चारों विधाओं में निपुणता प्राप्त की थी।12 ये चार विद्याएं बान्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता तथा दण्डनीति है । 13 एक अन्य प्रसंग में चौदह विद्याएं 1: फलामिलाषिणा पुरुषेण नकान्ततो नीतिनिष्ठेन भवितव्यम् । -तिलकमंजरी. पृ. 155 2. वही, पृ. 155 3. अनायासगृहीतसकलशास्त्रार्थयापि नीतिशास्त्रेषु ... -वही, पृ. 13 4. सन्निहितदण्डनीतिप्रतीहारीसमाकृष्टाभिः ... -वही, पृ. 13 5. नीतिशास्त्रशाणनिशित निर्मलप्रज्ञा ।.... -वही, पृ. 262 6. राज्यनीतिरिव यथोचितमवस्थापितवर्णसमुदाया.. -वही, पृ. 166 7. राज्यनीतिरिव सत्रिप्रतिपाद्यमानवार्ताघिगतार्था... -वही, पृ. 11 8. (क) आयतिशालिनीमि: शक्तिभिरिव "नीतिमार्गेण - वही, पृ. 54 (ख) नीतिशास्त्रनित्यविहितासक्तिर्व्यक्त~क्तशक्तित्रयः" - वही, पृ. 167 9. तिसृमिः प्रभावोत्साहमन्त्ररूपैस्त्रिभि: कारणरूद्भूताभिः शक्तिमिरिव तिलकमंजरी, पराग टीका, भाग 1, -पृ. 142 10. षानण्यप्रयोगचतुरः, -तिलकमंजरी, पृ. 13 11. “सन्धिश्चविग्रहं यानमासनं च समाश्रयम् । द्वैधीभावं च संविद्यान्मन्त्र. स्यैतांस्तु षड्गुणान् ।" -तिलकमंजरी, पराग टीका, भाग 1, पृ. 59 12. चतसृष्वपि विद्यासु लब्धप्रकर्षः, तिलकमंजरी, पृ. 13 13. आन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता दण्डनीतिश्च शाश्वती। विद्याश्चंताश्चतस्रस्तु लोकसंस्थितिहेतवः ।। -तिलकमंजरी, पराग टीका, भाग I, पृ. 59
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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