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________________ 74 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन का आश्रय होता है । द्रव्य नी हैं, पृथ्वी जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिक, आत्मा और मन । न्याय-दर्शन का उल्लेख किया गया है। तर्क-विध्या का भी निर्देष दिया गया है। नैयायिकों को प्रामाणिक तथा प्रमाणविद् कहा गया है । न्यायशास्त्र में प्रमाणों का निरूपण हुआ है, अत: इसे प्रमाणशास्त्र भी कहा गया है। प्रमाण का अनेक स्थानों पर उल्लेख आया है। प्रमाण का लक्षण है-प्रमाकरणं प्रमाणम् अर्थात् प्रमा का साधन प्रमाण है । प्रमा यथार्थ अनुभव को कहते हैं-यथार्थानुभवः प्रमा। अत: यथार्थानुभव के साधन को ही प्रमाण कहते हैं 6 न्यायशास्त्र में चार प्रमाण माने गये हैं-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान व शब्द प्रमाण ।' समवायिकारण का उल्लेख मिलता है । पट का समवायिकारण तन्तु है । यत्समवेतं कार्यमुत्पद्यते ततः समवायिकारणम् । यथा पटस्य तन्तुः । प्रमेय का उल्लेख किया गया है।' ज्ञातव्य विषय को प्रमेय कहते हैं। बौद्ध बौद्धों के क्षणिकवाद का संकेत एक उपमा के अन्तर्गत मिलता है ।10 बौद्धों के अनुसार पदार्थों का द्वितीय क्षण में निरन्वय अर्थात् नाश हो जाता है । बौदों के शून्यवाद का भी उल्लेख आया है। बौद्धों में माध्यमिक शून्यवाद को मानते हैं। 1. तत्र समवायिकारणं द्रव्यम् । गुणाश्रयो वा । तानि च द्रव्याणि पृथिव्यप्ते. जीवाभ्याकाशकालदिगात्ममनांसि नवैव । -केशवमिश्र, तर्क भाषा, पृ. 170 2. न्यायदर्शनानुरागिमिररौद्रः.... -तिलकमंजरी, पृ. 10 3. सत्तकविद्यामिव विधिनिरूपितानबध प्रमाणाम् । -वही, पृ. 24 4. (क) प्रमाणविद्भिरप्यप्रमाणविद्य:"" -वही, पृ. 10 (ख) परमतज्ज्ञाः पौराः प्रामाणिकाश्च, -वही, पृ. 260 ___ वही, पृ. 10. 260, 24 6. केशवमिश्र, तर्कभाषा, पृ. 13, 14 7. प्रत्यक्षानुमानोपमानशब्दाः प्रमाणानि -न्यायसूत्र, 11113 8. रीत्युपादानकारः .... -तिलकमंजरी, पृ. 234 9. कदाचित प्रमाणप्रमेयस्वरूपनिरूपणेन... -वही, पृ. 104 10. यस्य दोष्णि स्फुरद तो प्रतीये विबुधवः । बौद्धतर्क इवार्थानां नाशो राज्ञां निरन्वयः ।। -वही, पृ. 16 11. बौद्ध इव सर्वत; शून्यदर्शी। . -वही, पृ. 28
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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