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________________ 12 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन के साथ पुरुष का पुष्करपलाशवत् निर्लिप्त सम्बन्ध होता है, किन्तु विवेकख्याति होते ही यही पुरुष त्रिगुणात्मिका सुखदुःख मोहस्वरूपा प्रकृति से सम्बन्ध विच्छेद करके अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है। इसी सिद्धान्त का संकेत धनपाल ने प्रस्तुत प्रसंग में दिया है । सांख्य दर्शन में सत्व, रजस्, तथा तमोगुण युक्त त्रिगुणकल्पना की गई है। तिलकमंजरी में सत्व तथा रजोगुण का उल्लेख किया गया है। विषय एवं ज्ञानेन्द्रियों का भी उल्लेख मिलता है । योग योग शब्द का प्रयोग किया गया है ।" चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है । एक प्रसंग में कुम्भक प्राणायाम का संकेत प्राप्त होता है। प्राणायाम का अर्थ है श्वास और प्रश्वास की गति को विच्छिन्न कर देना। श्वास बाहरी वायु को भीतर खींचने की क्रिया को कहते हैं और भीतरी वायु को बाहर निकालना प्रश्वास कहलाता है । उन दोनों का संचरण न होना ही प्राणायाम है । कुम्भक प्राणायाम में वायु को भीतर ही स्तम्भित कर दिया जाता है।' एक अन्य उल्लेख में योगी द्वारा स्वरूप के साक्षात्कार का वर्णन है।10 जिससे असम्प्रज्ञात समाधि का संकेत प्राप्त होता है।11 अन्यत्र भी इसका संकेत 1. ईश्वरकृष्ण, सांख्यकारिका 64, 65 2. वही, पृ. 12, 13 3. सात्विकरपि राजसभावाप्त ख्यातिमिः:... . -तिलकमंजरी, पृ. 10 4. स्पर्शगन्धवर्ण विषयसौख्यमिव, .. -वही, पृ. 335 5. एवं च विकलीभूतसकलेन्द्रिया' -वही, पृ. 335 6. तिलकमंजरी, पृ. 9 7. योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः . . पातंजलयोगसूत्र 1/2 8. अप्रयुक्त योगामिरेकावयव प्रकटाननमरुतामपि गति स्तम्भयन्तीमिः ..... -तिलकमंजरी, पृ. 9 9. तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः -योगसूत्र 2/49 10. योगीज्ञानगोचरं चात्मनो रूपमध्यक्षविषयीकुर्वन्ति, .. __ -तिलकमंजरी, पृ. 45 11. तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम् -योगसूत्र 1117, 18, 113
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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