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________________ धनपाल का पाण्डित्व , 69 सगर सगर के 60, हजार पुत्रों की कथा का उल्लेख किया गया है । सूर्यवंशी सगर राजा ने सौ अश्वमेघ यज्ञ प्रारम्भ किये जिनमें निन्यानवे यज्ञ पूर्ण हो जाने के बाद जब सौवां यज्ञ चल रहा था तब इन्द्र ने अपने पद के छिन लिए जाने के भय से यज्ञ का अश्व चुराकर, पाताल में ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया । सगर के 60,000 पुत्र उस घोड़े को ढूंढते-ढूंढते जब पृथ्वी खोदकर कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे, तो उसे वहां देखकर वे मुनि को ही अपहरणकर्ता समझकर अपशब्द कहने लगे। ध्यान भग होने पर मुनि के तेज से वे भी तुरन्त जलकर भस्म हो गये । इस कथा का उल्लेख पृ. 9 पर किया गया है । जिनका पुनरोद्धार उन्हीं के वंशज भगीरथ ने अपनी तपस्या द्वारा गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाकर किया। इसी कारण गंगा भागीरथी कहलायी। सती ये शिव की पत्नी तथा हिमालय की पुत्री है (पृ. 5)। शिव का अपमान होने पर दक्ष की पुत्री सती द्वारा आत्माहुति (पृ. 395) देने की कथा वणित की गयीहै। अन्यत्र सती के द्वारा शिव के शरीर में प्रवेश करने का उल्लेख किया गया है। समुद्र मन्थन समुद्र मन्थन की प्रसिद्ध कथा का तिलकमंजरी में अनेकों बार उल्लेख किया गया है (पृ 43, 205, 54, 159, 58, 211, 76, 121, 122, 203, 204, 214, 221, 234 239) । समुद्र मन्थन से अमृत की उत्पत्ति हुई थी (पृ. 205), जिसका वितरण देवताओं में किया गया था 4 ऐरावत की समुद्र-मन्थन से उत्पत्ति एवं इन्द्र द्वारा उसका अपहरण (पृ. 54), पारिजात वृक्ष की मन्थन से उत्पत्ति (पृ. 54), समुद्र से कालकूट की उत्पत्ति पर देवों तथा दानवों का संभ्रमित होने (54) का उल्लेख है । चन्द्रमा, कौस्तुभमणि, सुधा, मदिरा इन सबकी प्राप्ति समुद्र-मन्थन से हुई, अतः इन्हें लक्ष्मी का सहोदर-समाज कहा गया है (पृ. 54)। कामधेनु की क्षीरसागर से उत्पत्ति का उल्लेख है (पृ. 58, 211)। दिव्य अश्व उच्च.श्रवस की 1. रामायण 1 1, 42-44, महा. 3, 108, भाग पु. 99 2. कपिलकोपानलेन्धनीकृतसगरतनयस्वर्गवार्ताभिव प्रष्टुं भागीरथीम्....... -वही, पृ.१ 3. मैनाकेन महार्णवे हरतनौ सत्या प्रवेशेकृते, -तिलकमंजरी, पृ. 5 4. पीयूषदानकृतार्थीकृतसकलाथिसुरसार्थेनमथनविरत ....... -वही, पृ. 43
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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