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________________ तिलकमंजरी की कथावस्तु का विवेचनात्मक अध्ययन इसके पश्चात् मलयसुन्दरी की कथा प्रारम्भ होती है । इस कथा में हम मलयसुन्दरी का प्रथम परिचय प्राप्त करते हैं। समरकेतु द्वारा वर्णित जो वृत्तान्त अधूरा छोड़ दिया गया था, वही समरकेतु तथा मलयसुन्दरी की प्रेम-कथा का अगला वृत्तान्त, मलयसुन्दरी के मुख से वर्णित किया गया। इस वृत्तान्त में कांची नगरी से अर्धरात्रि में विद्याधरों द्वारा उसके अपहरण से लेकर, समरकेतु से प्रथम समागम, उसका समरकेतु के गले में माला. डालना तथा अदृश्य हो जाना, समरकेतु द्वारा समुद्र में डूब जाना, उसे देखकर मलयसुन्दरी का भी अपने आपको समुद्र को अर्पित करना, मलयसुन्दरी का पुनः कांची आगमन, आत्महत्या का प्रयास, समरकेतु द्वारा त्राण, मलयसुन्दरी का प्रशान्तबैराश्रम में निवास, पुनः आत्महत्या का प्रयास, समरकेतु की कुशलता का समाचार मिलना तथा उसके मुनि-व्रत धारण करने तक की घटनाओं तक का वर्णन है । इस अन्तर्कथा के समाप्त होने पर पुनः मुख्य कया प्रकाश में आ जाती है । वस्तुतः अन्तर्कथा से मुख्य कथा विच्छिन्न नहीं होती, अपितु उसे आगे बढ़ाने में सहायक होती है, क्योंकि अन्तर्कथा तथा मुख्य कथा के पात्र परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध हैं। इसके पश्चात् तिलकमंजरी मलयसुन्दरी से मिलने आती है। तिलकमंजरी यहां भी लज्जावश हरिवाहन को कुछ प्रत्युत्तर नहीं दे पाती, केवल उसे अपने हाथ से ताम्बूल प्रदान करती है। वह हरिवाहन तथा मलयसुन्दरी को अपने भवन में आने का निमन्त्रण देती है जहां, उनका उचित सत्कार किया जाता है। वहीं शुक के रूप में गन्धर्वक का आगमन होता है। दिव्य-वस्त्र के द्वारा पुनः पुरुष-योनि होने पर वह अयोध्या से समरकेतु का पत्र लेकर जाने से लेकर शुकावस्था प्राप्ति पर्यन्त का वृत्तान्त सुनाता है । इस वृत्तान्त में यक्ष महोदर द्वारा समुद्र में डूबे मलयसुन्दरी तथा समरकेतु के उद्धार का उल्लेख है । इसके अतिरिक्त गन्धर्वक द्वारा पत्रों का आदान-प्रदान इसका प्रमुख उद्देश्य है, जो उसकी शुकावस्था में ही सम्भव था। __तीसरी अन्तर्कथा अनंगरति का वृत्तान्त है, इसका प्रमुख उद्देश्य हरिवाहन द्वारा छः मास पर्यन्त तपस्या करके विद्याधर चक्रवर्तित्व की प्राप्ति है। ___ इससे पूर्व हरिवाहन द्वारा तिलकमंजरी और मलयसुन्दरी को दिव्य हार तथा अंगुलियक प्रेषित किये जाते हैं, जिन्हें धारण करते ही वे अपने पूर्वजन्म के स्मरण से व्याकुल हो उठती हैं। तदनन्तर तीर्थयात्रा के प्रसंग में उन्हें एक 1. तिलकमंजरी, पृ. 259-345 .
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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