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________________ तिलकमंजरी में वर्णित सामाजिक व धार्मिक स्थिति 243 हैं. ऐसी मान्यता थी। ऐसी धारणा थी कि विविध कर्मों से बंधे हुए जीवों का अनेक जन्मान्तरों में सम्बन्ध होने के कारण अपने बन्धुओं, मित्रों से नाना प्रकार से पुनः पुनः सम्बन्ध होता है। यह मान्यता थी कि पूत्र हीन व्यक्ति पुत् नामक नरक में जाता है । पुत्र प्राप्ति के लिए विभिन्न उपाय किये जाते हैं । .. लोगों का तन्त्र-मन्त्र औषधियों, भूत-प्रेत में विश्वास था । इहलोक तथा परलोक में जनता का विश्वास था तथा धार्मिक कृत्य पारलौकिक सुख की प्राप्ति के लिए किए जाते थे। गुरूजनों के नाम में बहुवचन का प्रयोग करने का प्रचलन था। शुभ कार्य के लिए प्रस्थान करते समय पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठा जाता था । प्रस्थान से पूर्व सप्तच्छद के पत्तों के डाट से बंद मुख वाले चांदी के पूर्ण-कुम्भ को प्रणाम किया जाता था। वारविलासिनियां स्वर्णपात्रों में दही-पुष्प, दूर्वा, अक्षतादि मांगलिक वस्तुएं रखकर अवतारमकमंगल करती थी। अप्रतिरथ मंत्रों का जाप करता हुप्रा पुरोहित आगे-आगे चलता तथा उसके पीछे अन्य द्विज अनुसरण करते । शिशु-जन्म के समय भी अनेक प्रकार के मांगलिक कार्य किये जाते थे जिनका अन्यत्र वर्णन किया जायेगा । - प्रसन्नता के अवसर पर मित्रों से बलपूर्वक छीनकर वस्त्र बाभूषणादि ले लिए जाते थे, इसे पूर्णपात्र कहते थे ।10 समरकेतु तथा हरिवाहन के समागम पर 1. समग्राण्यपि कारणानि न प्राग्जनितकर्मोदयक्षणनिरपेक्षाणी फलमुपनयन्ति ___-वही, पृ. 20 2. सम्भवन्ति च भवार्णवे विविधकर्मवशवर्तिनां जन्तूनामनेकशो जन्मान्तरजात५. सम्बन्धर्बन्धुभिः सुहृदभिरर्थश्च नानाविधैः सार्धमबाधिताः पुनस्ते सम्बन्धाः । --वही, पृ. 44 3. • आत्मानं तायस्व पुनाम्नो नारकात्, --वही, पृ. 21 4. वही, पृ. 64-65 5. वही, पृ. 311, 64. 65, 51 6. वही, पृ. 42 7. बहुवचनप्रयोगः पूज्यनामसु न परप्रयोजनांगीकरणेषु,-तिलकमंजरी, पृ. 260 8... वही, पृ. 115 9. वही, पृ 115 10. उत्सवेषुसुहृद्मिर्यद बलादाकृष्य गृहयते वस्त्रमाल्यादि तत् पूर्णपात्रम् । . -तिलकमंजरी, पराग टीका, भाग 3, पृ. 123
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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