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तिलकमंजरी एक सांस्कृतिक अध्ययन
उल्लेख किया है। असुर कन्या को प्राप्त करने के इच्छुक रसातल में प्रविष्ट मिथ्या साधको को वेताल अपनी नख रूपी कुद्दालो से निकालने की कोशिश कर रहा था । असुर विवर साधना करने वाले वातिक कहलाते थे घनपाल ने श्मशान भूमि में भ्रमण करने वाले वातिकों के समूह का उल्लेख किया है । वातिकों के टंकों द्वारा पत्थरों के टुटने से बने हुए प्रकृत्रिम शिवालिंगों का उल्लेख किया गया है' बाण के मित्रो में से लोहिताक्ष असुर विवर-व्यसनी था ।। बाण ने भी असुर विवर साधना करने वाले वातिकों का उल्लेख किया है । असुर-विवर साधना में, पाताल में गड्डा खोदकर उसमें उतर जाता था तथा उसमें वेतालसाधा जाता था। हर्षचरित में महामास-विक्रय जैसी भयंकर साधना का उल्लेख है, जिसमें साधक शवमांस लेकर शमशान में फेरी लगाते हुए भूत-पिशाच को प्रसन्न करते थे यशस्तिलक में अपने शरीर के मांस को काट-काट कर बेचने वाले महावतियों का उल्लेख पाया है। घनपाल ने भी महाव्रत का उल्लेख कियाहै ।10 वस्तुतः ऐसी भयंकर क्रियाएं करने वाले ही महाव्रती कहलाते थे तथा ये शैवों के कापा. लिक सम्प्रदाय से सम्बन्धित थे । क्षीरस्वामी ने अपने प्रतीक नाटक प्रबोध चन्द्रोदय में कापालिक साधु का पूर्ण चित्र खींचा है । भवभूति ने मालतीमाधव के अंक 5 में कापालिक अघोरघण्ट का वर्णन किया है । डा० हान्दीकी ने कापालिक सम्प्रदाय का विस्तृत वर्णन किया है।11 कापालिक सम्प्रदाय का साधु कर्णिका,
1. (क) प्रविष्टारूणालोकस्तोकतरलितद्वारपालवेतालेष्वसुरदेवतार्चनारम्भ . पिशुनमपूर्वसौरभं दिव्यकुसुम घूपामोदमुद्गिरत्सु विवरेषु . वही, पृ. 151 (ख) विविक्षुसिद्वविक्षिप्तवलि शबलितासुरविवरः.... वही पृ. 235 (ग) उद्घाटितसमग्रासुरविवरेवः विलासिनीभवनः .... वही, पृ 260 कररूहकुद्दालरसुरकन्यारिरसया रसातलगतानलीकसाधकान्.... वही, पृ.47 अनेकवातिकभ्रमणलग्न........
- वही, पृ. 46 वातिककुट्टा क्टंकशकलिताकृत्रिमशिवलिगे
___ वही, पृ. 235 बाणभट्ट हर्षचरित, पृ 20 6. वही, पृ. 97 103
__ वही, पृ. 58 8. बाणभट्ट हर्षचरित, पृ. 58 9. महाव्रतिकवीरक्रयविक्रीयमाणस्ववर्लनवल्लूरम् सोमदेव, यशस्तिलक पृ. 49 10. नप्रतिपन्नं महाव्रतम्,
तिलकमंजरी पृ, 316 11. Handiqui K.K; Yasastilaka and Indian Culture p. 356-57.
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