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________________ 212 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन शबरों की बस्ती का विशद वर्णन किया गया है। ये निषादों से भी अधिक क्रूर होते थे । बस्ती के प्रत्येक घर के चूल्हे पर शिकार किये हुए पशुओं का मांस पक रहा था, उद्यान से बंदियों के रुदन की ध्वनि आ रही थी, चोरों से अपहृत धन आपस में बांटा जा रहा था, बालकों को मृगों को आकर्षित करने वाले गीत सिखाये जा रहे थे। शबर चण्डिका देवी के उपासक थे तथा चण्डिका को नर-बलि देने के लिए पुरुषों की खोज करते थे। पत्रशबर नामक जाति का भी उल्लेख हुआ है। पत्रशबर शबरों की वह जाति थी, जो छोटा नागपुर तथा बस्तर के जंगलों में शबरी नदी के दोनों ओर निवास करती थी। आश्रम-व्यवस्था __ आश्रम व्यवस्था का प्रमुख आधार मनु का यह सिद्धान्त है- शतायुर्वेपुरुषा : । इसका अर्थ यह नहीं है कि सभी व्यक्ति सौ वर्ष जीवित रहते हैं, इसे अधिकतम आयु मानकर मनुष्य जीवन को चार भागों में विभक्त किया गया था। यही चार आश्रम कहलाये । जीवन के प्रथम भाग में व्यक्ति गुरू के पास प्रध्ययन करता था, यह ब्रह्मचर्य कहा गया। द्वितीय भाग में वह विवाह करके गृहस्थ जीवन का पालन करता एवं पुत्रोत्पत्ति द्वारा पितृ-ऋण तथा यज्ञों द्वारा देव-ऋण से मुक्ति प्राप्त करता । इसे गृहस्थाश्रम कहा गया। जब व्यक्ति के बाल सफेद होने लगते, तो जीवन की तीसरी अवस्था में वह गृह त्याग कर वनवास धारण कर लेता । इसे वानप्रस्थ कहा गया। इनके पश्चात् व्यक्ति अपने जीवन की अंतिम अवस्था में सर्वस्व त्याग कर सन्यास धारण कर लेता। इसे सन्यासाश्रम कहा गया। तिलकमंजरी में चार आश्रमों का उल्लेख किया गया है। मेघवाहन के लिए कहा गया है कि समस्त पृथ्वी रूपी तपोवन की रक्षा करते हुए भी वह 1. वही, पृ. 200 2. तिलकमंजरी, पृ. 200 3. पत्रशबरपरिबह वहद्भिः , -वही पृ 236 4. अग्रवाल वासुदेवशरण, कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ. 193 5. Kane, P. V. ; History of Dharmasastra, Vol. II, Part I,P. 417. 6. चत्वार आश्रमा गार्हस्थ्यमाचार्यकुलं मौनं वानप्रस्थमिति । . -आपस्तम्ब धर्मसूत्र ॥ 9/21/1 7. Kane, P V.; History of Dharmasastra Vol. II,Part I,P.417 .
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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