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________________ तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन (15) जाङ्ग लिक - विषवैद्य को जाङ्ग लिक कहते थे । इसे वातिक, महावातिक, गारूडिक, महानरेन्द्र, मन्त्रवादी भी कहते थे । 1 210 (16) कायस्थ - तिलकमंजरी के वर्णन में श्लेष द्वारा अक्षपटल में स्थित नवीन राजा के राज्य की प्रमापक कृष्णवर्ण अक्षर-पंक्ति को दर्शाने वाले कायस्थ का उल्लेख किया गया है । अक्षपटल उस सरकारी दफ्तर को कहते थे जहाँ राज्य की आय - व्यय का हिसाब रखा जाता था तथा इसके अधिकारी को अक्षपटलिक कहा जाता था । तिलकमंजरी में सुदृष्टि नामक अक्षपटलिक का उल्लेख है, जिसने राजा की श्राज्ञा से हरिवाहन को उत्तरापथ तथा समरकेतु को अंगादि जनपद कुमारमुक्ति के रूप में प्रदान किये थे । इस दफ्तर में कार्य करने वाले foपिक को कायस्थ कहा जाता था । हर्षचरित में इसी प्रकार के कर्मचारी के लिये करणि शब्द आया है, जो कायस्थ की एक उपजाति थी । यह ग्रामाक्षपटलिक का सहायक होता था । * (17) कर्णधार - तिलकमंजरी में नौ-सन्तरण सम्बन्धी प्रभूत सामग्री प्राप्त होती है । कर्णधार नाविकों के नायक को कहते थे । कर्णधार का अनेक बार उल्लेख हुआ है। कैवर्त, धीवर' जालिक शब्द मछुए के लिए प्रयुक्त हुए हैं । पौतिक श्ररित्र चलाने वाले को तथा निर्यामक 10 नाव को आगे बढ़ाने वाले को कहते थे । नाव को कैवतों से तरण विद्या सीखने वाली विद्यार्थिनी कहा गया है । 11 तिलकमंजरी में नौवहन सम्बन्धी निम्नलिखित शब्दावली का प्रयोग हुआ है 1. तिलकमंजरी, पृ. 22, 51, 78, 89, 171, 234 2. अभिनवागतेनाक्षपटलमास्थाय कायस्थेन.... - वही, पृ. 246 3. वही, पृ. 103 4. अग्रवाल वासुदेवशरण - हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ, 140-41 5. तिलकमंजरी, पृ. 125, 127, 130, 131, 187, 278, 282 6. वही, पृ. 126, 130 7. वही, पृ. 238, 283 8. वही, पृ 151, 282 9. वही, पृ. 124, 138 10. वही, पृ. 138 11. नौमिरप्यन्तेवासिनी मिस्तरण विद्यामिवोपशिक्षितु सर्वदा पादतले लठ्ठन्तीमि - तिलकमंजरी, पृ. 126
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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