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तिलकमंजरी का साहित्यक अध्ययन
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के समान शुभ्र तथा सूक्ष्म दुकूल वस्त्र का जोड़ा पहना था । लक्ष्मी ने श्वेत दुकूल का अधोवस्त्र धारण किया था, जो कमलनाल के सूत्रों से निर्मित सा जान पड़ता था । मलयसुन्दरी द्वारा दिव्यवृक्ष के वल्कल का दुकूल धारण किया गया था। बाणभट्ट ने भी दुकूलवल्कल का उल्लेख किया है। दुकूल वस्त्र की कल्पवृक्ष से उत्पति बतायी गई है। श्वेत दुकूल के वितानों का अनेक स्थानों पर उल्लेख है। अदृष्टपार सरोवर को सर्पराज का लीलादुकूलवितान कहा गया है।' श्वेत तथा स्वच्छ दुकूल की चादर का उल्लेख है। वाणभट्ट ने भी दकूल से बने उत्तरीय, साड़ियों, पलंग की चादरों, तकियों के गिलाफ आदि अनेक प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख किया है। बाण के अनुसार दुकूल पुण्डदेश अर्थात बंगाल से बनकर आता था तथा इसके बड़े थान में से टुकड़े काटकर धोती या अन्य वस्त्र बनाये जाते थे। दोहरी चादर अथवा थान के रूप में विक्रयार्थ आने के कारण यह द्विकूल या दुकूल कहलाने लगा।10 . ....
कोटिल्य के अर्थशास्त्र से दुकूल के विषय में विशेष जानकारी मिलती है। इसके अनुसार बंगाल में बना हुवा दुकूल वस्त्र सफेद और मुलायम होता था । पौंड देश में निर्मित दुकूल वस्त्र नीले और चिकने होते थे तथा सुवर्णकुड्या में बने दुकूल ललाई लिये होते थे। दुकूल तीन तरीको से बुना जाता था-(1) मणिस्निग्धोदकवान (2) चतुरस्रकवान (3) व्यामिश्रवान । बुनावट के अनुसार दुकूल . के चार भेद होते थे-(1) एकाशुक (2) अध्यधांशुक (3) द्वयंशुक (4) यशुक ।
1. उल्लिखितशंखाबदातधुतिनी तनियसी नवे दुकूलवाससी वसानम्...............
वही पृ० 125 2. अच्छधवलं दिव्यदुकूलमम्बुजवनप्रीत्या पद्मिनीनालसूत्रेणेव कारितम् ....वही,
पृ.54
3. दिव्यतस्वत्कलदुकूलनिवसनाम्.............. .................. वही, पृ० 255 4. अग्रवाल वासुदेव शरण, हर्षचरितः एक सांस्कृतिक अध्ययन पृ. 78 5. स्वंयपतितकल्पद्रुमदुकूलवत्कल ........................... तिलकमंजरी, पृ० 24
वही, पृ० 203,219 7. लीलादुकूलवितानमिव फणीन्द्रस्य,
-वही, पृ. 203 8. सितस्वच्छमृदुकूलोत्तरच्छदम्,
-तिलकमंजरी, पृ. 70 9. अग्रवाल, वासुदेवशरण, हर्षचरितः एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ.78 . 10. वही, पृ. 78 11. कोटिल्य, अर्थशास्त्र 2/11