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तिलकमंजरी एक सांस्कृतिक अध्ययन
सामान्य वस्त्र
अंशुक
तिलकमंजरी में अंकुश का उल्लेख चालीस से भी अधिक बार हुआ है। इससे पता चलता है कि धनपाल के समय में यह वस्त्र सर्वाधिक प्रचलित था । 4 वल्कलाशुंक, उत्तरीयाशुंक, स्तनाशंक, जघनाशुंक, पाशुंक, वर्णाशंक, दिव्याशुंक इत्यादि शब्द अंकुश वस्त्र के विभिन्न प्रकारों व प्रयोगों पर प्रकाश डालते हैं । अंकुश वस्त्र के उत्तरीय अत्यधिक प्रचलित थे। अदृष्टपारसरोवर में स्नान के पश्चात् समरकेतु ने अपने उत्तरीयाशुक को लपेटकर तकिये की तरह सिरहाने लगा लिया था। अन्यत्र वीर-बहूटी के समान रक्तःकांति के अंशुक वस्त्र के उत्तरीय का उल्लेख किया गया गया है । अंशुक वस्त्र के उत्तरीय से मुंह ढापकर तिलकमंजरी चिरकाल तक रोयी थी।
रक्ताशुंक का अनेक बार उल्लेख किया गया है। कामदेवोत्सव पर नगर में प्रत्येक प्रासाद पर लाल अंशुक की पताकाएं लगायी जाती थी। एक स्थान पर संध्याराग रूपी रक्ताशुंक का वर्णन है। समरकेतु की नाव पर बंधी हुयी रक्ताशुंक पताका को सिंहमकर आई मांस समझकर झपटने लगा। जलमण्डप कामदेवगृह में रक्ताशंक की पताकाएं बांधी गयी थी।
पट्टाशंक नामक विशेष प्रकार के अंशुक वस्त्र का उल्लेख किया गया है। आस्थानवेदिका के दन्तपट्ट पर पट्टाशंक की धुली हुयी चादर बिछायी
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1. जरी, पृ. 12, 18, 31, 33, 57, 69, 72, 106, 123, 132, ___152,-157, 160, 163 164, 145, 177, 165, 197, 207, 20 215, 229, 248, 257, 265, 267, 263, 277, 292,
302, 313, 303,337, 338, 356, 381, 417 2. शिरोभागनिहितपिण्डीकृतोतरीयाशुक.... -तिलकमंजरी, पृ. 207 3. इन्द्रगोपकास्णा तिमिरुत्तरीयाशंक....
-वही, पृ. 301 वही, पृ. 417 5. (क) लोहिताशंकवंजयन्तीमिः....
-वही, पृ. 12 (a) वही, पृ. 303 6. वही, पृ. 197 7. वही, पृ. 145 8. बिरलोपलक्ष्यमागरक्ताशुपताकस्य कुसुमायुधामना.... -वही, पृ. 163