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________________ तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन में, 1 बैताढयपर्वत की अटवी के वर्णन में, 2 वैजयन्ती नगर के विप्लवादि प्रसंगों हुयी है । 142 करुण करूण रस का स्थायिभाव शोक है । इसकी सुन्दर अभिव्यक्ति हस्ती द्वारा हरिवाहन का अपहरण कर लिये जाने पर समरकेतु के विलाप में हुयी है - हा सर्वगुणनिधे, हा बुधजनैकवल्लभ, हा प्रजाबन्धौ, हृा समस्तकलाकुशल कोसलेन्द्रकुलचन्द्र, हरिवाहन, कदा द्रष्टव्योऽसि । समर केतु की शोक-विहवलता प्रस्तुत वर्णन में स्पष्ट है- अनुपदमास्पीकृतो दादहनेन सततबाष्पसलिलसंगादमूलमंकुरितमिव निःसंख्यता गतं दुःखभारमुद्वहन्मानसेन क्षणं निशण्णः क्षणमासीनः, क्षणं परावर्तमानो, मनुजलोकाया - सविद्धोषण द्वेषमव्रजन्ती महीमपतदुपरि ब्रह्माण्डमदलत्सहस्रधा - येन भुवनत्रय ख्यातविक्रमस्तस्मादपि करटिकीटादापदं प्राप्तोऽसि इत्यादि विलपन्विलीन - स कथमपि क्षपामनयत । पृ, 190 इसी प्रकार मलयसुन्दरी ने पाषाण के हृदय को भी द्रवीभूत करने वाला विलाप किया है - शतमुखी भूतदुःखदाहा निदाघसरिदिव प्रथमजलधरासार वाखिरणबन्धेन महतापि प्रयत्नेन हेलानतं बाष्पवेगमपारयन्ति धारयितुन्मुक्तातितारकरूणपुत्कारा हा प्रसन्नमुख, हा सुरेखसर्वाकार, हा रूपकन्दर्प —– किमेकपद एव निस्नेहतां गतः । किं न पश्यसि मामस्थान एव निर्वासितां पित्रा विसर्जितां मात्रा परिजनेनावधीरितां बन्धुमिरेका किनीमदृष्टप्रवासां वनवासदुःखमनुभवन् किमागत्य नाथ, नाश्वासयसि कदा त्वमीदृशो जातः -g. 332 शान्त रस शान्त रस का स्थायिभाव शम है । शान्तातप कुलपति के आश्रम के इस वर्णन में शान्त रस की व्यंजना की गयी है । जहां प्रातः काल में यज्ञ की अग्नि के धुएँ को दुर्दिन समझकर आश्रम के मयूर हर्षित होकर तीव्र केकारव करते है, जिससे भयभीत होकर सर्प समाधि के कारण निश्चल शरीर वाले मुनि के चटक पक्षियों के घोसलों से युक्त जटामडल के नीचे छिप जाते हैं । 4 वही, पृ. 120-122 वही, पृ. 200. वही, पृ. 342-43 प्रातरवेक्ष्य 1. 2. 3. 4. प्रातः होमहुतभुग्धूम्यामहादुर्दिनं, हृष्टस्याश्रम बर्हिणस्य रसितेरायामिभिस्रासिताः । नीचैरेत्य समाधिनिश्चलतनोर्मध्ये जटामण्डलं, यस्याबाधितबद्धनीडचटकाश्चक्रुः स्थिति भोगिनः ॥ • तिलकमंजरी, - 329-30
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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