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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
वे विनय का साथ नहीं छोड़ती थीं, दुःख में भी उचित सत्कार करती थीं, तथा कलह में भी कठोर वचन नहीं बोलती थीं।।
(2) इसी प्रकार सेघवाहन के वर्णन में भी इसका उदाहरण मिलता हैअनतितोलक्ष्मीमदविकाररखलीकृतो व्यसनचक्रपीडामिरनाकृष्टो विषयग्राहैरयन्त्रितः प्रमदाप्रमनिगडरजडीकृतः परमैश्वर्यसन्निपातेन-पृ. 14 अर्थान्तरन्यास
सामान्य का विशेष से तथा विशेष का सामान्य के द्वारा जो समर्थन किया जाता है, वह अर्थान्तरन्यास अलकार साधम्यं तथा वैधयं से दो प्रकार का होता है । दो उदाहरण दिये जाते हैं -
(1) समरकेतु आराम को देखकर कहता है – 'संसार में निश्चित रूप से अदृष्ट के कारण अल्प गुणों वाली वस्तु भी प्रमिद्धि प्राप्त कर लेती है, किन्तु अधिक गुण वाली वस्तु भी कीर्ति प्राप्त नहीं करती, अत: यह असंख्य कदली वनों से सुशोभित, अनेक मयूरों के केकारव से उद्भासित एवं सैकड़ों पुष्प-वृक्षों से युक्त इस उद्यान के होते हुए भी एक रम्भा, सप्तचित्र शिखण्डियों तथा कुछ सुमनसों से युक्त उद्यान भी अमरोध्यान कहलाता है। यहां सामान्य का विशेष के द्वारा समर्थन किया गया है।
(2) इसी प्रकार दूसरा उदाहरण भी है-'प्रथितगुण स्थान स्थित. स्यासतोऽपि हि माहात्यमाविर्भवति पद्मिनीदलोत्संगसंगी जलबिन्दुरपि मुक्ताफलद्युतिमालम्बते-मण्डनायते-- पृ० 213 । इसमें भी सामान्य का विशेष से समर्थन किया गया है, अतः अर्थान्तरन्यास अलंकार है । विरोधाभास
तिलकमंजरी में विरोधाभास अथवा विरोध अलंकार का प्रयोग प्रचुरता
1. कोपेऽप्यदृष्टमुखविकारामिळलीकैऽप्यनुज्झितविनयाभिः खेदेऽप्यखण्डितोचितप्रीतिपत्तिमिः कलहेऽप्यनिष्ठुरभाषिणीमिः........ ।
-तिलकमंजरी, पृ. 9 2. सामान्यं वा विशेषो वा तदन्येन समर्थ्यते यत्त सोऽर्थान्तरन्यासः साधयेणेतरेण वा ।
-मम्मट, काव्यप्रकाश, 10/164 व्यक्तं जगत्यदृष्टवशाद्विशालगुणसंपद्भिरप्यसुलभाः स्वल्पगुणरपि सुप्रापा: प्रसिद्धयो भवन्ति । येनात्र निरन्तरकदलीकलापान्तरितदिङमुखे मदमुखरासंख्याशिखिकुलोद्भासिन्यनन्तलतान्तकोटिसंकटकवृक्षविटपे""सुमनसां कोटिभिराकीर्णममरोधानमावर्ण्यते । -तिलकमंजरी, पृ. 212-213