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धनपाल का जीवन, समय तथा रचनायें
धनपाल का जीवन एवं व्यक्तित्व
अन्तरंग व बाह्य दोनों प्रमाणों से हमें धनपाल के जीवन से सम्बन्धित प्रचुर सामग्री प्राप्त होती है । धनपाल ने स्वयं अपनी रचनाओं में अपने विषय में निम्नलिखित जानकारी प्रदान की है ।
तिलक मंजरी की प्रस्तावना
इसमें धनपाल ने अपने पितामह, पिता तथा स्वयं अपने विषय में लिखा है | अपने पितामह देवर्षि के दान की महिमा का गान करते हुए वे कहते हैं“मध्यदेश के अत्यन्त समृद्ध नगर सांकाश्य में एक द्विज उत्पन्न हुआ, जो दानवर्षित्व से विभूषित होते हुए भी देवर्षि नाम से प्रसिद्ध हुआ । "1 इससे ज्ञात होता है कि धनपाल के पूर्वज मूलत: मध्यदेश के सांकाश्य नगर के निवासी थे । यह नगर वर्तमान समय में फर्रुखाबाद जिले में 'संकिसा' नाम से जाना जाता है । 2 इन्हीं देवर्षि के पुत्र सर्वदेव हुए, जो समस्त शास्त्रों के अध्येता, कर्मकाण्ड में निपुण, काव्य - निबन्धन और काव्य-अर्थ दोनों में समान रूप से कुशल होते हुए साक्षात् ब्रह्मा के समान थे ।
प्रथम अध्याय
इन्हीं विद्वान् ब्राह्मण का पुत्र था धनपाल, जिसे सकल विद्यासागर राजा मुंज ने अपनी सभा में 'सरस्वती' विरुद प्रदान किया था तथा जिसने
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आसीद्धिजन्माऽखिलमध्यदेश प्रकाशसांकाश्यनिवेशजन्मा । अलब्ध देवहिरिति प्रसिद्धि, यो दानवर्षित्वविभूषितोऽपि ॥
– तिलकमंजरी, 51, पृ. 7
(क) Indian Historical Quarterly, March, 1929, p. 142. (ख) प्रेमी, नाथूराम; जैन साहित्य और इतिहास, पृ. 409 शास्त्रेष्वधीती कुशलः क्रियासु, बन्धे च बोधे च गिरां प्रकृष्टः । तस्यात्मजन्मा समभून्महात्मा, देवः स्वयम्भूरवि सर्वदेवः ।।
- तिलकमंजरी, 52, पृ. 7
तिलक मंजरी, 53, पृ. 7