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________________ तिलकमंजरी का साहित्यक अध्ययन 93 हर्षचरित द्वारा इस द्विरूप गद्य अर्थात् कथा एवं आख्यायिका दोनों का प्रथम निदर्शन प्रस्तुत किया, जिन्हें लक्ष्य ग्रंथ मानकर परवर्ती साहित्यशास्त्रियों ने गद्य की इन दोनों विधाओं को विभक्त करने वाले लक्षण स्थापित किए । रुट के काव्यालंकार से इसकी पुष्टि होती है। रुद्रट ने काव्य, कथा, आख्यायिकादि प्रबन्धों को दो प्रकार का कहा है- उत्पाद्य तथा अनुत्पाद्य । उत्पाद्य प्रबन्ध मे कवि कल्पना प्रसूत कथा निबद्ध रहती है, नायक प्रसिद्ध भी हो सकता है अथवा ल्पित भी।1 प्रसिद्ध नायक वाले उत्पाद्य प्रबन्ध के लिए टिप्पणीकार नमिसाधु ने माघकाव्य का उदाहरण दिया है तथा प्रकारान्तर के लिए तिलकमंजरी तथा बाण-कथा को उर्द्धत किया है । परवर्ती कवियों द्वारा तिलकमंजरी का यह सर्वप्रथम प्रामाणिक उल्लेख है । इससे सिद्ध होता है कि 11वीं सदी के उत्तरार्द्ध में तिलकमंजरी कथा के रूप में अत्यन्त प्रसिद्ध हो गई थी। रूद्रट ने कथा का लक्षण करते हुए कहा है-कथा में कवि को सर्वप्रथम पद्यों द्वारा अपने इष्ट देवताओं नथा गुरुओं को नमस्कार करके संक्षेप में अपने कुल का वर्णन तथा स्वकर्तृव का उल्लेख करना चाहिए। तत्पश्चात् छोटे-छोटे तथा अनुप्रास युक्त गद्य में पुरवर्णन पूर्वक कथा की रचना करनी चाहिए। प्रारम्भ में प्रमुख कथा के अवतरण के लिए उससे सम्बद्ध कथान्तर का भली-भांति विन्यास करना चाहिए । कन्याप्राप्ति (अथवा राज्यलाभ आदि) उसका फल हो तथा शृंगार रस का उसमें भली प्रकार विन्यास किया जाय, संस्कृत से भिन्न भाषा होने पर कथा पद्य में निबद्ध होनी चाहिए। आख्यायिका का लक्षण इस प्रकार किया गया है-आख्यायिका में कवि को (कथा के समान ही) देवों तथा गुरुओं को नमस्कार करके, उनके रहते हुए काव्य-रचना में उसका उत्साह नहीं होता है यह कहते हुए अन्य कवियों की प्रशस्ति करनी चाहिए। इसके पश्चात् उसकी रचना में, राजा के प्रति भक्ति, पर-गुण संकीर्तन की प्रकृति अथवा अन्य कोई स्पष्ट हेतु बताये । तत्पश्चात् कथा 1. रूद्रट-काव्यालंकार 16/3 2. नमिसाधु की टिप्पणी-प्रकारान्तरमाह-कल्पिता युक्ता घटमानोत्पत्तिर्यस्य तमित्यं भूतं नायकमपि कुत्रचित्कुर्यात् आस्तामितिवृत्तम् । अत्र च तिलक मंजरी बाणकथा वा निदर्शनम् । 3. रुद्रट, काव्यालंकार, 16-20 4. वही, 16-21 वही, 16-22 6. वही, 16-23 7. वही, 16-24 8. वही, 16-25
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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